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________________ आगम महाव्रती नहीं होती है, इससे सूत्र में संजद शब्द नहीं बताने वाला पक्ष ठीक है। " " इसके बाद समाज में बहुत विवाद उत्पन्न हुआ, तब हमने दो-दो बार यह समाचार प्रगट करवाया कि यदि कोई विद्वान् हमारे पास आकर हमारी बात को दोषयुक्त बतावेंगे, तो हम अपनी भूल को सुधारेंगे, तथा अपनी भूल का प्रायश्चित्त भी कर लेंगे, किन्तु हमारे पास कोई भी विद्वान् नहीं आया और न आंदोलन ही रुका।' "अब हम संजद - चर्चा के विषय में कुछ नहीं बोलना चाहते। इस सम्बन्ध में हमारा कोई विकल्प भी नहीं है। जिनवाणी - जीर्णोद्धारक संघ के ट्रस्टी लोगों को अधिकार है कि वे अपनी इच्छानुसार जैसा उचित समझें, वैसा करें। हम अपना निर्णय दे चुके, अब हम इस विचार में नहीं पड़ना चाहते हैं।" महाराज की सरलता ३०६ आचार्य महाराज के पास हठवाद नहीं है। वे बालक की भी युक्तिपूर्ण बात को मानने तैयार हैं। इस प्रसंग में वे भूलसुधार कर प्रायश्चित्त तक लेने की घोषणा कर चुके, फिर भी दूसरे पक्ष के लोग नहीं आए ? इसका क्या कारण है ? आचार्यश्री की विद्वत्ता तथा अनुभव विख्यात थे। उनके समक्ष आकर चर्चा चलाना साधारण कार्य नहीं था । पत्रों में लेख लिख देना दूसरी बात है, किन्तु समक्ष में पूर्वापर विचार कर प्रश्नों का उत्तर देते समय पता चलता है कि कौन कितने पानी में है। आचार्यश्री की दृष्टि यह है, जो सत्य है यह हमारा है, न कि जो हमारा कथन है वही सत्य है । सन् १९५१ के अश्विन मास में बारामती में संजद शब्द के विषय में कई दिन तक सूक्ष्म चर्चा चलती रही। उस समय उपस्थित विद्वान्, आचार्यश्री की असाधारण विचारशक्ति, धारणाशक्ति, षट्खंडागम सूत्रों का गम्भीर चिंतन आदि देखकर प्रभावित हुए थे । भाववेद की अपेक्षा संजद शब्द रखना ठीक है, ऐसे भावपक्ष के समर्थक विद्वानों को भी आचार्यश्री का युक्तिवाद अनुकूल लगा और उन्होंने आचार्यश्री का समर्थन किया। मूल प्रति संबंधी भ्रम इस चर्चा के विषय में जनसाधारण में यह भ्रम उत्पन्न किया गया है कि भूतबलि पुष्पदन्त स्वामी द्वारा लिखित मूल प्रति के पाठ में परिवर्तन किया जा रहा है। यह बात मिथ्या है। मूल प्रति नष्ट हुए एक हजार वर्ष से अधिक हो गये। अभी मूडबिद्री में जो प्रति ताड़पत्र पर लिखित है, वे लगभग चार-पाँच सौ वर्ष प्राचीन हैं। उनमें भी अनेक जगह पाठ त्रुटिपूर्ण हैं। कहीं न्यून, कहीं अधिक और कहीं अशुद्ध पाठ पाया जाता है । ताड़पत्र की प्रति के अनुसार दो विद्वानों द्वारा तुलना की गई महाबंध की प्रतिलिपी के भीतर अनेक अशुद्धियों का सद्भाव हमें ग्रंथ का अनुवाद तथा सम्पादन करते समय ज्ञात हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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