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प्रतिज्ञा
२६८ अच्छा असर नहीं पड़ेगा। आचार्यश्री की आराधना
उस समय पास में बैठे हुए उसी दिन बारामती से आये सेठ तुलजाराम चतुरचंद ने सुनाया कि-"आचार्य महाराज ने तीन दिन से बिल्कुल भी आहार नहीं लिया है। वे दिन-रात भगवान् के जाप में ही लगे हैं। वे किसी से कुछ भी बातचीत न करके निरन्तर प्रभु नाम स्मरण ही में संलग्न हैं। कुटी के बाहर कुछ क्षणों को आये थे। शौचादि से निवृत्त हो देवदर्शनादि के बाद जाप जपने में लग जाते हैं। यह बात सुनते ही मन में विचार होने लगा, इतने बड़े महापुरुष की जिनेन्द्र आराधना अवश्य कार्य करेगी।"
बैरिस्टर दास पूर्ण निराश से दिखते थे। उनकी बोली भी ऐसी सान्त्वना देने वाली और आगे की तैयारी की प्रेरणाकार हो गई थी, जैसा कि वकील लोग असफल होने पर किया करते हैं। आशा की किरण
लगभग १५ मिनट के बाद न्यायाधीश आए, और मामला पुनः आरम्भ हो गया। उसी समय मेरी दृष्टि में एक बात आई । मैं बैरिस्टर दास की पिछली पंक्ति में था। दास बाबू ने जरूरी कागज निकाले तो अकस्मात् दावात उलट गई और उनके सब कागज श्यामवर्णी बन गए। मैंने सोचा शकुन तो अच्छा दिखता है, किन्तु सामग्री तो पराजय का ही निश्चय कराती है।
प्रधान न्यायाधीश ने एडवोकेट जनरल श्री आमीन से पूछा-“आपको क्या कहना है ?" सरकारी वकील ने कहा- “बम्बई कानून के द्वारा सभी जैन मंदिर हिन्दुओं की पूजा के लिए उन्मुक्त हो जाते हैं, इससे उनमें जाकर पूजा करने का अधिकार हरिजनों को भी प्राप्त हो जाता है।"जस्टिस गजेन्द्र गड़कर ने पूछा, “एडवोकेट जनरल महाशय, यह बताइए कि क्या इस कानून से सभी जैनमन्दिर हिन्दू मंदिर रूप में हो जाते हैं।"
एडवोकेट जनरल ने कहा-“जी हाँ ! सभी जैनमन्दिर हिन्दू बन जाते हैं।"
इस पर रुष्ट से होते हुए जज ने पूछा, “क्या कानून का यह अभिप्राय है कि जो जैन संप्रदाय हजारों वर्षों से चला आया है, उसे जरासी कलम चलाकर खतम कर दिया जाय? कानून का यह कदापि रुख नहीं हो सकता है कि हरिजनों के उद्धार के उद्देश्य से बनाए गए कानून द्वारा संपूर्ण जैनियों को समाप्त करके हिन्दू बना दिया जाय।" उन्होंने यह भी कहा, "आपके हरिजनों के हित की भावना का मैं आदर करता हूँ, किन्तु यह बात नहीं मान सकता हूँ कि इस कानून के द्वारा जैनियों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया गया।"
चीफ जस्टिस ने पूछा-"श्री एडवोकेट जनरल! यह बताइये कि आपके कलेक्टर को
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