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________________ २८४ प्रतिज्ञा जैनमंदिर के संरक्षण निमित्त उद्योग करना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि इस विषय में गृहस्थ लोग चुप होकर बैठ गये । धर्म पर राजनीति का हस्तक्षेप कैसे उचित कहा जा सकता है। शासन-सत्ता का धर्म पर आक्रमण न रोका जाय, तो भविष्य में बड़ी विपत्ति आये बिना न रहेगी । " कोई यह सोचे कि धर्म तो आत्मा का गुण है, उसे कौन धक्का लगा सकता है, इस पर महाराज ने कहा था- "जब तक मंदिर हैं, तब तक जैनधर्म है। प्रतिमाजी हमारा प्राण है। धर्म का लो देखते हुए हम कैसे चुप रहें ? गृहस्थों ने अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं किया, इससे हमने धर्म के वास्ते अन्न त्याग किया है । हम आज ही चारों प्रकार का आहार छोड़कर सल्लेखना करने को तैयार हैं। यद्यपि हमें भगवान् की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे हमारे हृदय में हैं, किन्तु हमें अपने दूसरे त्यागी भाइयों का ध्यान है। जब जैनमंदिर के विषय में अन्य लोगों के हाथ में सत्ता दी जाने लगी, तब भी क्या चुप बैठना ? धर्म पर आक्रमण होते देख डरकर बैठ जाना ठीक नहीं है। हम तो एकान्त में भी बैठकर मूर्ति की आराधना कर लेंगे, वहाँ कौन आ जायगा ? किन्तु हमें अपने त्यागी भाइयों की फिकर है।” कोई-कोई यह सोचते हैं- “बहुसंख्या से मिलकर रहो, अपने स्वार्थ का ख्याल करते हुए काम करो। चतुरता, स्वार्थसिद्धि तथा लाभ इसी में है । यश भी इसी में है कि अपने स्वतंत्र अस्तित्व को हिन्दू नाम में ऐसे ही विलुप्त हो जाने से बड़ी-बड़ी आफतें आ जायेंगी। देखते नहीं हो, जमाना कैसा खराब आ गया है।' "" ऐसे डरने वालों की उपेक्षा करते हुए इन मनस्वी महात्मा ने कहा- "जैनधर्म स्वतंत्र है । अतः जैन मन्दिर हिन्दू मंदिर नहीं हैं। इससे हिन्दुओं का चाहे वे हरिजन हों या हरिजन न हों, जैन मंदिर से क्या सम्बन्ध है ?" अपने को जैन कहने में भीत होने वालों का भ्रम निवारण करते हुए उन्होंने कहा था- " हमें अपने बाप का नाम लेने में फाँसी दी जाती है और गोली मारी जाती है, तो हमें वह स्वीकार है, मगर डरकर दूसरे को अपना बाप नहीं बोलेंगे। इससे व्यभिचार व जातपने का दोष आयेगा । " जो घबराकर यह सोचते थे कि आचार्य महाराज की इच्छा तीन जन्म में भी पूरी नहीं हो सकती, अब तो हरिजनों का ही राज्य है, जैनसमाज की कौन सुनने वाला है, उनके निराशा के अन्धकार को दूर करते हुए महाराज का कथन था - "अभी जैनधर्म का लोप नहीं होगा। ऐसी भगवान् की वाणी है। वह मिथ्या नहीं है। हम खातरी से कहते हैं, कि यह भ्रष्टाचार अधिक दिन नहीं टिकेगा । " अद्भुत आत्मविश्वास "हमारा विश्वास है कि अभी धर्म का लोप नहीं होगा। जब जैनधर्म का लोप होगा तब दुनिया से सबके धर्मों का भी लोप हो जायगा ।" For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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