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प्रतिज्ञा-१
फलटण
सोलापुर के अनन्तर महाराज का चातुर्मास फलटण में हुआ। यहाँ ही महाराज ने धार्मिक स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए लोकोत्तर त्याग किया था।
इस सम्बन्ध में कुछ स्पष्टीकरण आवश्यक है। बम्बई सरकार ने हरिजनों के उद्धार के लिए एक हरिजन मंदिर प्रवेश कानून सन् १९४७ में बनाया। उसके नियम नं. २ब में लिखा था कि 'हिन्दू शब्द में जैन का समावेश है।' इस छोटे-से नियम ने अनेक उपद्रवों के उत्पन्न होने के योग्य वातावरण उत्पन्न कर दिया। जब जैनियों में हरि अर्थात् विष्णु के आराधक हरिजनों का अभाव है, तब वस्तुतः इस उपधारा का कोई वास्तविक उपयोग नहीं है, फिर भी सुधार के जोश में यह कानून जैनियों पर भी लादा गया था। जालरचना
इस कानून का आश्रय लेकर साँगली के हरिजन सेवा संघ के मंत्री ने ४ अगस्त सन् १९४८ को कुछ महतरों चमारों आदि को इकट्ठा कर जैन मंदिर में जबरदस्ती ले जाने का जाल रचा। अप्रिय अतीत __फलटण में पहले धर्मान्ध कुछ हिन्दुओं ने एक ऐतिहासिक जैनमंदिर को हड़पकर उसे हिन्द मंदिर बना लिया और उसे जब्रेश्वर का नाम दे दिया। उस मंदिर के बाहर के भाग में कुछ जैन मूर्तियाँ आज भी विद्यमान हैं, फिर भी वह मंदिर जैनियों के हाथ से निकल गया। कोल्हापुर का प्रसिद्ध जैनमंदिर आज हिन्दू बन गया है। वहाँ नेमिनाथ भगवान के स्थान में शेषशायी विष्णुदेव विराजमान हैं। मैसूर का चामुण्डी पर्वत पहले जैनियों का तीर्थ था। आज वह भी हिन्दू मंदिर हो गया है। दक्षिण भारत के वृद्ध जैन यह बात जानते हैं कि उन पर धर्मान्ध वैदिकवर्ग ने कब और कैसे अत्याचार किए। सैकड़ों जैन मन्दिरों में जिनेन्द्र की मूर्तियों का निर्दयतापूर्वक अपहरण अथवा विनाश करके रक्त वर्ण रंजित पाषाणपिण्ड स्थापन कर उन्हें हिन्दू मंदिर बनाने का कार्य किया गया। बहुमूल्य जैन शास्त्रों का विनाश किया गया। ऐसे ही अत्याचारी धर्मान्ध वर्ग ने दक्षिण में अपने दुष्ट भावों को द्योतित करने के लिए साँप सोडावा पण जैन मारवा' (साँप को भले ही छोड़ दो, किन्तु जैनियों का अवश्य संहार करो) यह कहावत बना डाली है। यह दृष्टि" हस्तिना पीड्यमानोपि न गच्छेज्जैन-मन्दिरम्" की अपेक्षा अधिक भीषण और कटुतापूर्ण है। यह
१. हाथी द्वारा पछाड़े जाने पर भी जैन मंदिर में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
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