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________________ २७३ चारित्र चक्रवर्ती है, तब वहाँ लोग आये व दर्शन किए। दानियों के योग से महावीरजी का निर्माण हुआ। अब क्षेत्र निरंतर वर्धमान हो रहा है। इसे देखकर भगवान का नाम वर्धमान सार्थक है, यह सब के समझ में आ जाता है। इस क्षेत्र की समृद्धि के विषय में यह प्रसिद्धि है कि एक बार जयपुर राज्य के मंत्री पर राजा का कोप हो गया था। मंत्री महोदय की भक्ति महावीर प्रभु पर थी। प्रभु की निरंतर भक्ति में तल्लीन रहने से मंत्री का संकट दूर हो गया। भक्तराज मंत्री ने विशाल जिन मंदिर बनवाया, तब से क्षेत्र की दिनदूनी रातचौगुनी उन्नति हो गई। अब क्षेत्र में हजारों आदमियों के ठहरने योग्य धर्मशालाएं बन गई हैं। नल-बिजली की व्यवस्था हो गई है। नीरोगताप्रद जल व पवन है, बड़ी शांति मिलती है। इससे पंजाब, उत्तर-प्रदेश, मध्यप्रदेश, विन्धप्रदेश, मध्यभारत आदि के लाखों लोग दर्शन करते हैं और कामना पूर्ण होने पर कृतज्ञता के रूप में लक्ष्मी की वहाँ वर्षा करते हैं। महावीरजी में ऐसे हजारों लोग आते हैं जो अपने नगर में कभी भी भगवान् का दर्शन नहीं करते हैं, किन्तु महावीरजी में तन्मय होकर बड़ा भक्तिभाव दिखाते हैं। बड़े-बड़े पात्रों में घी भरकर आरती होती है। सोने-चाँदी के चंवर छत्रों को लोग खूब चढ़ाया करते हैं। प्रभु की पूजा में लिखा है : । इक दिन मंत्री को लगा दोष, धरि तोप कही नृप खाइ रोष। तुमको जब ध्याया वहाँ वीर, गोला से झट बच गया वजीर ।। मंत्री नृप चांदन गांव आय, दरशन कर पूजा की बनाय। करि तीन शिखर मंदिर बनाय, कंचन कलशा दीने धराय।। यह हुक्म किये जयपुर नरेश, सालाना मेला हो हमेश। अब जुड़न लगे बहु नरि उ नार, तिथि चैत्र सुदी पूनो मझार ।। मीना गूजर आ विचित्र, सब वरण जुड़े करि मन पवित्र। बहु निरत करत गावै सुहाय, कोई-कोई घृत दीपन रहो चढ़ाय।। कोई जय-जय शब्द करे गंभीर, जय जय जय हे श्री महावीर। जैनी जन पूजा रचत आन, कोई छत्र चंवर के करत दान । जिसकी जो मन इच्छा करन्त, मनवांछित फल पावै तुरन्त। जो करै वंदना एक बार, सुख पुत्र सम्पदा हो अपार ।। महावीरजी में आचार्य शान्तिसागर और उनके शिष्य आचार्य वीरसागर महाराज की स्मृति में शान्ति-वीर-नगर का निर्माण हुआ है। एक गुरुकुल भी स्थापित हुआ है। अनेक सुन्दर मंदिर भी बने हैं। भगवान् शान्तिनाथ प्रभु की उन्नत संगमरमर की मूर्ति बहुत आकर्षक है। महावीरजी बड़ा रम्यतीर्थ बन गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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