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________________ २६६ प्रभावना पचहत्तरे पोह, सुभ घरी। अहिछत्ते की पूजा करी॥ मिलिए हथिनापुर तहाँ । शांति कुंथु अर पूजे जहाँ ॥५८१॥ शांति-कुंथु-अरनाथ को, कीनों एक कवित्त। ताको पढ़ें बनारसी, भाव भगति सौ चित्त ॥ ५८२ ॥ श्री विससेन नरेस, सूर, नृपराय सुदंसन । अचिरा सिरिया देवि, करहि जिस देव प्रसंसन। तसु नन्दन सारंग, छाग, नन्दावत लंछन । चालिस, पैतिस, तीस, चाप काम काया छवि कंचन ।। सुखदासि बनारसिदास मनि, निरखत मन आनन्दई। हथिनापुर, गजपुर, नागपुर, शांति, कुंथु, अर वंदई ॥५८३॥ शांतिनाथ भगवान की माता ऐरादेवी थीं, कुंथुनाथ स्वामी की जननी श्रीमती थी, अरजिन की माता मित्रा थीं। मनरंगलाल ने अरजिन की पूजा की जयमाला में लिखा है - ____ जय मित्रा देवी के सुनंद, मुख शोभित तुम अकलंक चंद। शांति, कुंथु तथा अर जिन चक्रवर्ती भी हुए हैं। ये तीनों कामदेव पद के धारक भी हैं। रक्षाबन्धन पर्व का जन्मस्थान भी हस्तिनापुर अक्षयतृतीया पर्व का सम्बन्ध जिस प्रकार हस्तिनागपुर से है, इसी प्रकार रक्षाबंधन पर्व भी इसी नगर से सम्बन्धित है। हस्तिनागपुर का शासन पद्यनरेश के हाथ में था। उनके छोटे भाई महामुनि विष्णुकुमार थे। यहाँ अकंपनाचार्यादि सात सौ मुनियों के संघ ने चातुर्मास किया था। वहाँ ही नरमेध यज्ञ के नाम से मुनियों के विनाश का पाखण्ड रचने वाले मंत्री बलि ने सात दिन का शासन प्राप्त कर रखा था, किन्तु विष्णुकुमार मुनिराज के पुरुषार्थ से श्रावणी पूर्णिमा को वह धर्मसंकट दूर हुआ था। बलि को अपने पापकर्म के कारण निन्दा प्राप्त हुई थी और वह देश के बाहर निकाला गया था। इस दृष्टि से जैसे यह स्थल दान-तीर्थंकर, धर्म तीर्थकर की मूर्ति है, उसी प्रकार वात्सल्य भाव के उज्ज्वल आदर्श विष्णुकुमार की भी जन्मभूमि रहा है। पुराणों के परिशीलन से भव्यजीवों को ऐसी विपुल सामग्री मिलती है, जो इस भूमि के जैनवैभव के संबंध में बतलाती है। भारतवर्ष में सभी लोग इसे महाभारत के महासमर की भूमि के रूप में जानते हैं। महाभारत महाकाव्य का प्रमेय इसी भूमि ने प्रदान किया है। १. बलिने वचनबद्ध होने पर पद्यनरेश से ७ दिन का राज्य माँगाथा-दीयतां मेऽद्यराज्यं सत्पदिनावधि (२०, २१ हरिवंश पुराण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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