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________________ पैंतीस कारण पर्दूषण में आचार्य महाराज से अमूल्य अनुभव पूर्ण सैद्धान्तिक चर्चा द्वारा अपूर्व आल्हाद और महान प्रकाश प्राप्त होता रहा है। सात, आठ वर्षों से मेरा पर्युषण महाराज के समीप ही व्यतीत हुआ करता है, इसलिए मेरे मन को अर्थ प्राप्ति की अपेक्षा बौद्धिक और आध्यात्मिक लाभ उठाना श्रेयस्कर लगा। इसका विशेष कारण है कि उनके पास जाने पर ऐसा लगता है, मानों हम सजीव उत्तम, क्षमा आदि दश विध धर्मों की पार्श्व भूमि में पहुँच गए हों। अतएव मैं महाराज के पास लोणंद पहँचा। एक दिन आचार्य महाराज के पास नीरा के कुछ भाई दर्शनार्थ पहुँचे। मैंने उत्साही सेठ नेमचन्द देवचंद जी आसवलीकर से कहा कि -"आपके लिए एक प्रिय सामग्री में लाया हूँ"और मैंने उन्हें ग्रंथ की हस्तलिखित प्रति दिखाई । उसे देख उनका गुरूभक्त हृदय अत्यन्त हर्षित हुआ। मैंने कहा-“ग्रंथ प्रकाशन के उपरांत सहायतार्थ लगाई गई द्रव्य बिक्री के पश्चात् सधन्यवाद लौटा दी जाएगी। इस योजना से लोक कल्याण होते हुए भी आर्थिक क्षति नहीं होगी। गोम्मटेश्वर स्वामी का महाभिषेक महोत्सव समीप है। उस समय ग्रंथ की बिक्री भो सरलता से हो जायगी ऐसी आशा है।" उनको यह योजना उचित लगी। उनने तथा श्री रावजी हीराचंद कोठड़िया ने हमसे नीरा का अनुरोध किया। नीरा पहुँचने पर उक्त दोनों सज्जनों ने तथा श्री रामचन्द्र अमीरचन्द्र शाह ने हमारी योजना की पूर्ति का वचन दिया तथा वचन-पूर्ति की। उक्त आर्थिक सहायता में जो भी कमी पड़ी उसकी पूर्ति हमारे भाई ज्ञानचंद दिवाकर ने की। इस ग्रंथ प्रकाशन की अधिक अड़चन दूर करने का कार्य असाधारण महत्व रखता है, इसलिए नीरा के उक्त तीन सज्जनों को सामयिक उदारता के लिए धन्यवाद है। अब ग्रंथ प्रकाशन के प्रबंध की समस्या थी। छपाई की कठिनता भाई छगनमल जी, बी.ए., एल.एल.बी., मैनेजर, परफेक्ट पाटरी कंपनी, जबलपुर के सहयोग से सहज ही दूर हो गई। ग्रंथ निर्माण में उपयोगी विपुल ग्रंथ, अनेक लाभप्रद सुझाव आदि हमारे अनुज प्रोफेसर सुशीलकुमार दिवाकर, एम.ए., बी.कॉम., एल.एल.बी. तथा भाई श्रेयांसकुमार दिवाकर, बी.एस.सी. से प्राप्त हुए। अभिनंदन कुमार दिवाकर, एम.ए. ने प्रकाशन आदि के निमित्त बहुत श्रम किया तथा चित्रों के प्रकाशन आदि की व्यवस्था निमित्त टाइम्स ऑफ इंडिया प्रेस, मुम्बई में पहुँचकर कुशलता से सब कार्य सम्पन्न कराया। उक्त प्रेस के उच्च अधिकारियों ने विशेषकर श्री राजकुमार जैन, डिप्टी मैनेजर, टाइम्स प्रेस, और वीरेन्द्र कुमार जैन एम.ए., 'धर्मयुग' बंबई ने प्रेम और सौजन्य सहित कार्य किया। हमने देखा आचार्य महाराज के जीवन का थोड़ा सा वर्णन एवं उनके चित्रों का दर्शन कर सर्वत्र सहयोग प्राप्त करना सरल हो जाता था। कर्नाटक प्रान्त में परिभ्रमण कर आचार्य श्री की जन्मभूमि तथा अन्य स्थानों में जाकर उपयोगी सामग्री प्राप्त करने में कीर्तनकार ब्रह्मचारी जिनदास जी समडोलिकर ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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