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________________ २४६ चारित्र चक्रवर्ती वर्षा आ गयी। इसके अनन्तर पुलिस के आने से वे लोग भाग गये । " कर्म सिद्धांत पर अडिग विश्वास इस घटना के द्वारा वे पुरुषार्थ के एकान्तवाद का निराकरण करते हुए कहने लगे - " ऐसी स्थिति में दैव बलवान है। काम करना हाथ में नही है। हाथ में होगा भी तो हम प्रतिकार न करेंगे। शेर मार्ग में आता है। वह खायेगा, तो भी हम हटेंगे नहीं। हमारा कर्म पर दृढ़ विश्वास है। कर्म प्रतिकूल न होगा, तो समुद्र में भी फेंके जाने पर कुछ नहीं होगा । " 66 महाराज ने यह भी कहा था-' 'कोई गाली देता है, कोई प्रशंसा करता है । सब अपनाअपना काम करते हैं। आत्मा को भी अपना काम करना चाहिए, तब कल्याण होगा। धर्म मार्ग पर चलोगे, तो मोक्ष मिलेगा। इसमें शंका क्या ? भगवान् ने सड़क बताई है। " नाका से दोस्ती, ना काहु से बैर एक दिन महाराज कहने लगे-" हमारी भक्ति करने वाले को जैसे हम आशीर्वाद देते हैं, वैसे ही हम प्राण लेने वालों को भी आशीर्वाद देते हैं। उनका कल्याण चाहते हैं। " इन बातों की साक्षात् परीक्षा राजाखेड़ा के समय हो गई। ऐसे विकट समय पर आचार्य महाराज का तीव्र पुण्य ही संकट से बचा सका, अन्यथा कौन शक्ति थी, जो ऐसे व्यवस्थित षड्यन्त्र से जीवन की रक्षा कर सकती ? 1 कदाचित् आचार्य महाराज का विहार हृदय की प्रेरणा के अनुसार हो गया होता, तो राजाखेड़ा काण्ड नहीं होता, किन्तु भवितव्य अमिट है । और भी जगह देखा गया है, भक्त लोग महाराज से अनुरोध करते थे और करुणा भाव से वे लोगों का मन रखते थे, तब प्रायः गड़बड़ी हुई है। जब महाराज ने आत्मा की आवाज के अनुसार काम किया तब कुछ भी बाधा नहीं आयी । साधुओं का मार्ग लोक मार्ग से पृथक एक दृष्टि से राजाखेड़ा काण्ड का बड़ा महत्व है। कमठ के उपसर्ग से भगवान् पार्श्वनाथ की महिमा अति विकसित हुई थी, इसी प्रकार इस संकट के द्वारा आचार्यश्री का आत्म-सामर्थ्य अधिक प्रकाशमान हुई । धौलपुर स्टेट ने तत्परतापूर्वक कर्तव्यपालन किया। साधुओं का मार्ग दूसरा है और शासकों का कर्त्तव्य पृथक् है। दुष्टों का दमन कर न्याय का रक्षण करना शासक का धर्म है। महापुराण में आचार्य जिनसेन स्वामी ने लिखा है - नरेश यदि दण्ड धारण करने में शैथिल्य दिखायें, तो प्रजा में मत्स्य न्याय की प्रवृत्ति हो जाती है । जिस प्रकार बड़ा मत्स्य छोटे को खा जाता है, इसी प्रकार बलवान व्यक्ति निर्बल को विनष्ट कर देता है ।" For Private & Personal Use Only "" Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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