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________________ २४७ चारित्र चक्रवर्ती उस समय आचार्य महाराज के अंतःकरण ने विहार करने की प्रेरणा की, किन्तु आगत अनेक पंडितों आदि के आग्रह का विचार कर उन्होंने विहार नहीं किया। चौथा दिन भी सानंद व्यतीत हो गया। पाँचवां दिन आया। राजाखेड़ा में कुछ पापी लोग, जो संभवतः बलि के वंशज होंगे, जन्मतः न सही, तो प्रकृति की अपेक्षा ही सही, संघ पर संकट का पहाड़ पटकने के पाप-प्रयत्न में जोर से संलग्न थे। इसी से आचार्य श्री के पवित्र अंतःकरण ने प्रस्थान करने का परामर्श किया था, किन्तु सद्भावना वश लोकानुरोध का विचार कर वे रुक गये थे। धर्म संकट __ अब पाँचवाँ दिन आया, किसे कल्पना थी कि आज कल्पनातीत उपद्रव होगा, किन्तु सुयोग की बात कि उस दिन आचार्य महाराज चर्या के हेतु कुछ पूर्व निकल गये थे। आहार की विधि भी शीघ्र सम्पन्न हो गई। सब त्यागी लोग चबूतरे पर सामायिक करने का विचार कर रहे थे, आचार्यश्री ने आकाश पर दृष्टि डाली और उन्हें कुछ मेघ दिखाई दिये। यथार्थ में वे जल के मेघ नहीं, विपत्ति की घटा के सूचक बादल थे। उनको देखकर आचार्यश्री ने कहा कि आज सामायिक भीतर बैठकर करो।' गुरुदेव के आदेश का सबने पालन किया। सब मुनिराज आत्मा के ध्यान में मग्न हो गये। सर्व जीवों के प्रति हमारे मन में समता का भाव है, यह उन्होंने अपने मन में पूर्णतः चितवन किया और तत्त्वचिन्तन भी प्रारम्भ किया। अन्य श्रावक लोग अतिथि-संविभाग कार्य के पश्चात् अपने-अपने भोजन में लगे। इतने में क्या देखते हैं, लगभग पाँच सौ गुंडे नंगी चमचमाती तलवार लेकर मुनि संघ पर प्रहार करने के हेतु छिद्दी ब्राह्मण के साथ वहाँ आ गये। मुनिराज आज बाहर ध्यान नहीं कर रहे थे, इससे उनकी आक्रमण करने की पाप भावना मन के मन में ही रही आयी। उन नीचों ने जैन श्रावकों पर आक्रमण किया। श्रावकों ने यथायोग्य साधनों से मुकाबला किया। श्रावक लोगों ने जोर की मार लगाकर उन आतताइयों को दूर भगाया था, किन्तु शस्त्र-सज्जित होने के कारण वे पुनः बढ़ते आते थे, ताकि जैन साधुओं के प्राणों के साथ होली खेलें। श्रावक भी गुरुभक्त थे। प्राणों की परवाह न करते हुए उनसे खूब लड़े। किसी का हाथ कटा, किसी की अंगुली कटी, जगह-जगह चोट आयी। इतने में संध्या को रियासत की सेना आयी, तब इन नर पिशाचों का उपद्रव रुका। छिद्दी ब्राह्मण पकड़ लिया गया। उस उपद्रव के समय संघ के साधुओं में भय का लेश भी नहीं था, वे ऐसे बैठे थे, मानों कोई चिंता की बात ही न होवे। उन्होंने अद्भुत आत्मसंयम का परिचय दिया। उस समय मेघों ने भयंकर वर्षा कर दी थी, इससे उपद्रवकारियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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