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________________ २४३ चारित्र चक्रवर्ती सदृश थे, जिसमें कीट कालिमा आदि लिप्त थी। रत्नपरीक्षक के रूप में महाराज ने इनको देख लिया था। धीरे-धीरे अपने संपर्क द्वारा उनका जीवन इतना अधिक विकसित कर दिया, कि उन्होंने मनुष्य जीवन की श्रेष्ठ-निधि निर्ग्रन्थ परीक्षा में उत्तीर्णता प्राप्त की। सोनागिरि के इतिहास में यह सन् १९२६ की आष्टाह्निक महापर्व की फाल्गुनी पूर्णिमा स्मरण योग्य बन गयी, जब चार उज्ज्वल आत्माओं ने महाव्रती बनकर अपने को, जगत् को, और जैन संस्कृति को मंगलमय बनाया। __ अब संघ में सात मुनिराज हो गये थे। उनके बीच गुरु रूप में आचार्य महाराज शोभायमान होते थे। सातों ऋषिराज परमागम प्रसिद्ध सात मुनिवरों का स्मरण कराते थे। ऋद्धिधारी सूर्य का प्रकाश होने पर ताराओं की ज्योति का पता नहीं चलता है, इसी प्रकार जिस निर्वाण भूमि सोनागिरि में अनेक संतों ने निर्वाण दीक्षा धारण की, वहाँ अन्य व्रत धारण करने वालों की भी संख्या बहुत होते हुए भी उसका पृथक् उल्लेख नहीं होता था। इस प्रकार बहुत प्रभावना हुई तथा चारित्तं खलु धम्मो' को प्रचार हुआ। उस दिन धर्मात्मा पुरुषों ने देखा कि चारित्र रूपी सुवर्ण प्राप्ति में प्रेरणा देने के कारण यथार्थ में वह सोनागिरि है। श्रमणसमन्वित होने से उसे श्रमणगिरि के रूप में भी स्मरण करना अच्छा और युक्ति युक्त भी लगता था। आजकल यह क्षेत्र अधिक समुन्नत दिखता है। ग्वालियर सोनागिरि में धर्मामृत की वर्षा करता हुआ संघ ग्वालियर पहुंचा, जहां पौष शुक्ला तृतीया को मुनि नेमिसागर महाराज का केशलोंच हआ। ग्वालियर प्राचीन काल से जैन संस्कृति का महान् केन्द्र रहा है। ग्वालियर के किले में चालीस, पचास-पचास फीट ऊंची खड्गासन दस-पन्द्रह मनोज्ञ दिगम्बर प्रतिमाओं का पाया जाना तथा और भी जैन वैभव की सामग्री का समुपलब्ध होना इस बात का प्रमाण है कि पहले ग्वालियर का राजवंश जैन संस्कृति का परम भक्त तथा महान् आराधक रहा है। एक किले की दीवालों में बहुत सी मूर्तियों का पाया जाना इस कल्पना को पुष्ट करता है, यह स्थल संभवतः तीर्थ स्वरूप रहा हो। ग्वालियर में जो स्थान तानसेन नामक प्रसिद्ध गायक से सम्बन्धित बताया जाता है, वह पहले जैन मन्दिर रहा है। ग्वालियर रियासत तो जैन मूर्तियों तथा जैन कला पूर्ण सामग्री का अद्भुत भण्डार प्रतीत होता है। ग्वालियर के जिनालय भी सुन्दर हैं। नगर में एक शांतिनाथ भगवान की मूर्ति बड़ी मनोज्ञ, अति उन्नत खड्गासन है। जैनियों में प्राचीन नाम ग्वालियर का गोपाचल प्रचार में रहा है, कारण वहाँ के भट्टारक जी के तत्त्वावधान में अनेक स्थानों की प्रतिमाओं की प्रतिष्ठाएं हुई हैं। भट्टारक जी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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