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________________ प्रभावना २४० बुन्देलखंड के सांस्कृतिक स्थलों में अकिंचनता का साम्राज्य है । उसका दर्शन करते हुए इन महान् महात्माओं को भी हमारे प्रमाद पर अवश्य दया आई होगी। अस्तु, भवितव्यता को विचारते हुए यह सन्त समुदाय आगे बढ़ता जाता था। व्रतदान, धर्मोपदेश का कार्यक्रम तो सर्वत्र चलता रहता ही है, जैसे सूर्य का उदय होकर अंधकार को दूर करने का कार्य सदा चलता रहता है। सोनागिरि अब संघ अगहन सुदी द्वादशी को पवित्र निर्वाणभूमि सोनगिरिजी आ गया । निर्वाण काण्ड में लिखा है- 'सुवर्णगिरि के शिखर से नंगकुमार, अनंगकुमार आदि साढ़े पाँच कोटि मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया, उनको हमारा प्रणाम है। भैया भगवतीदास ने लिखा है - नंग अनंगकुमार सुजान, पाँच कोटि अरु अर्ध प्रमान । मुक्ति गए सोनागिरि शीश, ते वंद त्रिभुवनपति ईश ।। सोनागिरि तत्कालीन दतिया राज्य के सोनागिरि रेल्वे स्टेशन से लगभग दो मील की दूरी पर स्थित तीर्थ है। लगभग ७८ जिनमन्दिर बड़े भव्य मालूम पड़ते हैं । वे पहाड़ी पर हैं, किन्तु पहाड़ी, पहाड़ सदृश नहीं दिखती । वन्दना करने में शरीर को कोई कष्ट नहीं होता । मन्दिर, बिल्कुल पास-पास होने से वन्दना में समय भी नहीं लगता । मन्दिरों का समुदाय बड़ा मनोहर लगता है। सौन्दर्य अपूर्व दिखता है । भगवान् चन्द्रप्रभु का मन्दिर विशेष महत्वास्पद माना जाता है। जिस प्रकार शिखरजी में पार्श्वनाथ भगवान् की टोंक यात्री का विशेष ध्यान आकर्षित करती है, उसी प्रकार यहाँ चन्द्रप्रभु भगवान् का मन्दिर विशेष रम्य लगता है । उस मन्दिर को विशेष अतिशय सम्पन्न भी मानते हैं। कैसा ही व्यथित, चिंतित, भग्नमनोरथ व्यक्ति एक बार पर्वत पर पहुंच जाय, तो उसके चित्त में सहज ही शांति का भाव उत्पन्न हुए बिना न रहेगा। एक मानस्तम्भ चन्द्रप्रभु के मन्दिर के आगे बन जाने से क्षेत्र का सौन्दर्य वृद्धिगत हो गया है। नव प्रतिष्ठित बाहुबली भगवान् की मनोज्ञ तथा समुन्नत मूर्ति के द्वारा आनन्द की वृद्धि होती है। यहाँ बड़ी विशाल धर्मशालाएं हैं, जिनमें हजारों यात्रियों को स्थान मिल जाता है। सोनागिर में धनिकों का प्रिय सोना तो नहीं दिखता है। हाँ ! संयमी आत्माओं तथा मुमुक्षुओं को सारा पर्वत सोने का क्या, रत्नों से भी अधिक महत्व का प्रतीत होता है। परिग्रह का त्याग करने वाले मुनियों के लिए सोनागिरि हो, रत्नागिरि या पाषाणगिरि हो, १. गंगागंगकुमारा कोडी पंचद्ध मुणिवरा सहिया । सुवणागिरिवर सिहरे णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ प्राकृत निर्वाण काण्ड | For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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