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प्रभावना की पूजा करके अपने नगर को कृतार्थ अनुभव किया। शाहपुर
आगे संघ उवरा गाँव पहुंचा। यहाँ का मन्दिर सुन्दर है। यहाँ से चलकर संघ शाहपुर पहुंचा। यहाँ चैत्र सुदी १ सं. १९८६ से चैत्र सुदी चौथ पर्यन्त संघरहा। अजैनों ने भी जैन भाइयों के साथ सन्तों के समादर में भाग लिया। यहाँ श्रीजी का विमान भी निकाला गया। लगभग तीन सहस्त्र श्रावक आये थे। संघ के साधुओं के बड़े मार्मिक प्रवचन होते थे। वीरसागर महाराज ने सप्त व्यसनों के त्याग पर बड़ा प्रभावशाली उपदेश दिया था। यहाँ से संघ का पंचमी को विहार हुआ। वह पिंडरिया, डुगरासा, बमोरी में धर्म प्रभावना तथा उपदेश दान करता हुआ सप्तमी को सागर पहुंचा। सागर में शांति के सागर
महाकौशल प्रांत में जबलपुर के पश्चात् दूसरे नम्बर का नगर सागर ही है। यहाँ कई हजार जैनी पाये जाते हैं। यहाँ परवार, गोलापूर्व जैनों की ही बहुलता है। इतर जैन उपजातियों का महाकौशल प्रांत में एक प्रकार से अभाव सदृश ही है। सागर में संस्कृत जैनविद्यालय के समीप ही संघ ठहरा था। प्रतिदिन संघ के द्वारा लोगों की शंका का समाधान तथा अनेक प्रकार के संदेहों का निराकरण किया जाता था। संघ के प्रचार कार्य द्वारा बहुत लोगों का धर्ममार्ग में स्थितिकरण हुआ था। द्रोणगिरि क्षेत्र __सागर की जनता के अधिक अनुरोध से संघ ने वहाँ अधिक समय दिया। शांति के सागर आचार्यश्री के चरणों के प्रति सागर की जनता का विशेष प्रेम होना स्वाभाविक ही है। ‘स्वपक्षदर्शनात् कस्य न प्रीतिरुपजायते।
वहाँ से चलकर संघ वैशाख सुदी एकम को द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र पहुंचा। यहाँ हजारों भाइयों ने दूर-दूर से आकर गुरुदर्शन का लाभ लिया। महाराज पर्वत पर जाकर जिनालय में ध्यान करते थे। उनका रात्रि का निवास पर्वत पर होता था। प्रभात होते ही लगभग आठ बजे महाराज पर्वत से उतर कर नीचे आ जाते थे। एक दिन की बात है कि महाराज समय पर न आये। सोचा गया कि संभवतः वे ध्यान में मग्न होंगे। दर्शनार्थियों की लालसा प्रबल हो चली। साढ़े आठ, नौ, साढ़े नौ बजे और भी समय व्यतीत हो रहा था। जब विलम्ब असह्य हो गया, तब कुछ लोग पहाड़ पर गये। उसी समय महाराज वहाँ से नीचे उतर रहे थे। शेर का बहुत काल तक महाराज के पास बैठना
लोगों ने महाराज का जयघोष किया। चरणों को प्रमाण किया और पूछा, 'स्वामिन् !
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