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________________ प्रभावना २२६ उपयोग करना उन दानियों के प्रति प्रामाणिक व्यवहार के प्रतिकूल है, जिन्होंने उस कठिन कमाई के पैसे को मोक्षमार्ग के हेतु अर्पण कियाथा। जिन्हें लौकिक कार्यों को प्रोत्साहन देना है, वे नवीन दान की धारा को उस ओर लगवा सकते हैं, किन्तु पूर्वप्रदत्त धर्मादा द्रव्य को आज बहुमत के बल पर रत्नत्रय के असाधनों में लगाना अच्छा है या नहीं, यह भगवान् कुन्दकुन्द स्वामी कथित परमागम के प्रकाश में स्वयं विचार लेवें। हमें प्रतीत होता है, लोगों की आँखें खोलने का भी महान् कार्य आचार्यश्री ने पूर्वोक्त नोहटा ग्राम के बाहर की प्रतिमाजी को मन्दिर में विराजमान करने के उपदेश द्वारा सम्पन्न किया है। दुःख है कि कभी-कभी तरुण मंडली, जो आजकल प्रायः शास्त्रों का स्वाध्याय न करने में प्रवीण होती जा रही है, आगम पक्ष के समर्थकों की बात सुनना तो दूर उसके प्रति तिरस्कार का व्यवहार करती है। यह कार्य बड़ा अनर्थपूर्ण है। आगम-प्रेमियों का कर्तव्य है, कि वे रंचमात्र भी भय न करके सन्मार्ग का प्रतिपादन करें। जिनेन्द्र की आज्ञा से डरना चाहिए, लोगों से क्या प्रयोजन सिद्ध होगा? अभाना यहाँ से रवाना होकर संघ अभाना ग्राम पहुँचा। यहाँ आचार्य शान्तिसागर महाराज का केशलोंच ज्ञात कर लगभग तीन हजार श्रावकों का समुदाय दूर-दूर के ग्रामों से आ गया था। सब भाइयों के भोजनादि की सुव्यवस्था गांव के मालगुजार सेठ डालचंद गुलाबचंद जी, दमोह की ओर से हुई थी। श्री जी का विहार हुआ था। आचार्य महाराज का केशलोंच देखकर लोगों के अन्तःकरण पर बड़ा प्रभाव पड़ा था। पुण्यमूर्ति ___ महाराज की पुण्यमूर्ति कुछ ऐसी अद्भुत थी, कि उनकी तपश्चर्या का प्रत्येक कार्य हृदय को खींचताथा। उनके व्यक्तित्व में असाधारण आकर्षण रहा है। विलक्षण परमाणुओं से उनके शरीर की रचना हुई प्रतीत होती थी। हमने देखा है, महाराज चुप बैठे हैं, किसी से कुछ नहीं कहते, फिर भी सैकड़ों व्यक्ति उनको देखने को ही बैठे रहते थे। सभा में महाराज आये, तो ऐसा लगता था कि जीवन आ गया, बाहर गये, तो ऐसा लगता था चेतना बाहर चली गयी हो। उनके निमित्त से सहज ही धर्म की ओर भाव झुकते रहे थे। __ आचार्यश्री के आदेश को पाकर चंद्रसागर जी तथा पार्श्वकीर्ति ऐलक महाराज के भाषण हुए। उन्होंने उस समय प्रचलित विवाद की बातों पर पर-स्त्री पुनर्लग्न तथा असवर्ण विवाह के दोषों पर प्रकाश डालते हुए शीलधर्म की महत्ता पर जोर दिया था। चरित्रहीनों की उन्नति क्षणिक होती है आज वर्णसंकर प्रवृत्तिवाले पश्चिम के गुरुओं के तत्त्वावधान में शिक्षित आर्य-भूप्रसूत लोग भी अपनी सत्प्रवृत्तियों तथा उच्च आचार को छोड़कर वहाँ की विषयों तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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