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________________ २२१ ___चारित्र चक्रवर्ती जहाँ ऐसे अहिंसक, अपरिग्रही, सत्यनिष्ठ, संतजनों का वास होता है। राजनीति का क्षेत्र स्वयं पंकिल है। उसमें संलग्न लोगों को इन आदर्शों को देखकर अपने मुख तथा हृदय की मलिनता का शोधन करना आवश्यक है। वे भला कल्याण कहाँ दे सकते हैं ? बेचारा अन्धराज पथ-प्रदर्शन का कार्य किस भाँति कर सकता है ? अतः सच्चा कल्याण चाहने वाली और मानवता की रट लगाने वाली नेतागिरी को इन सच्चे मानवों से प्रकाश पाना चाहिए। इसके सिवाय मंगल मन्दिर में प्रवेश का उपायान्तर नहीं है। ___ यहाँ से चलकर संघ पिपरिया पहुंचा। वहाँ २० घर परवार समाज के हैं। वहाँ विमानोत्सव हुआ। भगवान् का महाभिषेक हुआ। इसके पश्चात् संघ कटरा ग्राम आया। वहाँ के ठाकुर साहब आदि बहुत लोगों ने मद्य, मांसादि का त्याग किया। कोनी क्षेत्र दर्शन आगे चलकर कोनी ग्राम मिला। यहाँ के मन्दिर मन को खेंचते हैं। शान्त वातावरण है। अब इस क्षेत्र के सौन्दर्य और भव्यता में महान् वृद्धि हुई है। यहाँ खड्गासन तीन मूर्तियाँ नयनाभिराम हैं। यह आकर्षक तीर्थ हो गया है। इसी कारण संघ ने वहाँ तीन दिन निवास किया। आजकल कोनी में मेला लगना प्रारंभ हो गया है। ऐसे धार्मिक निमित्तों से जीव को पुण्यसंचय का अनायास सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। ये मंदिर भट्टारक नरेन्द्र भूषण के निमित्त से बने थे। आज कोनी में श्रावकों के घर नहीं हैं, किन्तु वहाँ के जिन मन्दिर बताते हैं, कि जैनियों की अच्छी संख्यारही होगी। आज इस बात की आवश्यकता है कि अपने प्राचीन धर्मायतनों, तीर्थों, मूर्तियों की सम्यक् व्यवस्था निमित्त धर्मात्मा भाई द्रव्य का व्यय करें। लोकरूढ़ि आदि के नाम पर तो हजारों रुपये व्यय करते हर्ष होता है, किन्तु धर्म के कार्य निमित्त उसका शतांश भी निकालने में कष्ट होता है। यह आवश्यक है कि धर्म प्रभावना तथा जीर्णोद्धार के हेतु अधिक द्रव्य व्यय किया जाय। पाटन यहाँ से चलकर संघ पाटन ग्राम में दो दिन ठहरा। वहाँ करीव २५ घर जैनियों के हैं। लोगों ने बड़ी भक्तिपूर्वक गुरुओं की सेवा की। अन्य जनता को भी बहुत लाभ पहुंचा। जैसे आकाश से वर्षा होती है, तो सभी खेतों को लाभ होता है, इसी प्रकार आचार्य महाराज से संघ से यदि लाभ होता था, तो जैन तथा अन्य सभी भाइयों का हित होता था, महाराज की दृष्टि में सब मनुष्य एक से थे। इतना ही नहीं, सभी प्राणी उनको एक बराबर प्रतीत होते थे। इसी से वे सब जीवों की रक्षा का उपदेश देते थे। छोटे-छोटे जीवों को भी वे अपना बन्धु मानते थे और उनके प्रति बंधु का व्यवहार करते थे। निरन्तर पिच्छी के द्वारा ही उन छोटे जीवों का रक्षण करते हुए बन्धुत्व की भावना को कार्यान्वित करते थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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