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________________ २२० प्रभावना राजनीतिज्ञों का प्रयास नहीं होता और यदि सामान्य शैली में उसका उल्लेख कर भी दिया तो जनता का अन्तःकरण उससे प्रभावित नहीं होता है। यही कारण है जो हम स्वतंत्र भारत में भ्रष्टाचार का जनता में प्रवेश पाते हैं और उन बड़े-बड़े राजनीतिज्ञों तथा. उनके पार्श्वचरों में भी उसी पाप प्रवृत्ति को वृद्धिंगत रूप में देखते हैं। यथार्थ कल्याण यथार्थ में जीव का कल्याण आचार्य सदृश वीतराग परम तपस्वी संतों की अमृत वाणी द्वारा होता है। साधारणतया रुपया-पैसों को दृष्टि पथ में रखते हुए कोई-कोई कहते हैं, जो कम से कम मूल्य की वस्तु लेता है और अधिक से अधिक मूल्य की सामग्री देता है वह साधु है। यह परिभाषा किसी तर्क की नींव पर अवस्थित नहीं है, यह तो स्वेच्छानुसार (Arbitrary) की गयी है। फिर भी इस दृष्टि से देखा जाय, तो इन संतों द्वारा जो कुछ जगत को प्राप्त होता है, वह तो अनमोल है। रत्नों की राशि से भी उसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती। कारण इससे प्राणी को सच्चा जीवन प्राप्त होता है। जैसे कोई वैद्य वृक्ष की जरा सी छाल लाकर मरणोन्मुख राजा का प्राण बचाता है, तो राजा उसका मूल्य लाखों देता है, उस छाल का मूल्य उसके द्वारा संपादित कार्य की श्रेष्ठता के कारण बढ़ जाता है, इस दृष्टि से इन मुनीन्द्रों के द्वारा हुआ आत्म कल्याण इतना कीमती है, कि उनका एक उपदेश भव-भव तक में कृतज्ञ जीव को उऋण नहीं कर पाता है। __ सर्प युगल को पार्श्वनाथ भगवान् ने मरते समय सांत्वना के चार शब्द ही कहे थे, किन्तु उस जिनेन्द्र की वाणी से उस युगल ने देवपर्याय पाई, प्रभु पर कमठ ने जब उपसर्ग किया, तब उसे दूर किया तथा आज भी जो पार्श्व-प्रभु का हृदय से स्मरण करता है, उसके संकट निवारण के लिए सहायता प्रदान करने को यह देवदंपति तत्पर रहा करता है। जीवंधर स्वामी ने मरणासन्न कुत्ते को नमस्कार मंत्र देकर उसका हित किया था। उससे देवपद प्राप्त उस जीव ने जीवंधर स्वामी के प्रति कठिन अवसरों में महत्वपूर्ण सेवा की थी इस अपेक्षा से संतों द्वारा दिया गया उपदेश इतना मूल्यवान रहता है कि विश्व बैंक की संपत्ति द्वारा भी उसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती। इतनी बड़ी वस्तु देते हुए भी वे सन्त समाज से कुछ भी नहीं मांगते। मुनियों का अयाचना व्रत रहता है। भक्ति वश लोग उनकी सेवा में आवश्यक वस्तुएँ अर्पण कर कृतार्थता का अनुभव करते हैं। महान् दाप्ता इस संघ द्वारा जो जीवों का कल्याण हो रहा था, वह बड़ी विश्व कल्याण कान्फ्रेन्सों, सम्मेलनों द्वारा सम्पन्न नहीं होता है। सच्चे कल्याण का प्रकाश वहाँ कही प्राप्त होता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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