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प्रभावना
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बातों का धर्म से सम्बन्ध है, उनके विषय में यदि प्रभावशाली साधु सन्मार्ग का दर्शन न करें, तो स्वच्छंदाचरणरूपी व्याघ्र धर्मरूपी वत्स का भक्षण किए बिना न रहेगा। इन सन्मार्ग के प्रभावक प्रहरियों के कारण ही समाज का शील और संयमरूपी रत्न कुशिक्षा तथा पाप-प्रचाररूपी डाकुओं द्वारा लुटे जाने से बच गया।
hair at a ar at बीमारी फैली हो, तो वहाँ वीणा लेकर वादन करने में मग्न होने वाले गायक को कहा जायगा, इस समय आप वीणा के तारों को विश्राम करने दीजिए, यह समय गायन का नहीं है। रोगी व्यक्तियों को औषधि देकर उनके कष्ट निवारण का काल है, इसी प्रकार जब उच्छृंखलता की लपेटें संयम के सदन को दग्ध करने को स्फुलिंग फेंकना शुरू करें, तब उस अग्नि को प्रशान्त किये बिना श्रेयोमार्ग कहाँ मिलेगा ? अधर्म का विरोध आत्मबली महापुरुष ही करेगा। स्वार्थी या भीरु प्रकृति का नहीं ।
एक समय था, जब गृहीत मिथ्यात्वी जिनेन्द्र के शासन पर आक्रमण करते थे, उस समय महान् ज्ञानी आचार्य समंतभद्र, अकलंक सदृश तार्किकों ने अपने तर्क-चक्र के प्रहार से जैन संघ का रक्षण किया था। अब वह समय बदला और जैनसंस्कृति और सदाचरण पर अपने ही भाइयों द्वारा प्रहार होना आरंभ हुआ, तब आगमज्ञ परम हितैषी आचार्य महाराज की दृष्टि में यही बात उचित जँची, कि इस समय समाज में बढ़ते हुए शिथिलाचार को रोकने का उद्योग करना चाहिए। वे और उनके कुशल शिष्य सन्मार्ग रक्षण में तत्पर रहे। सहजपुर संस्कारपुर हुआ
सहजपुर में सहज ही में अच्छी प्रभावना हुई । अन्य लोगों ने मद्य - मांसादि का त्याग किया । बहुत-से मुसलमानों ने हिंसा का त्याग किया था। समर्थ आत्मा का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता। इस सन्मार्ग के उपदेश द्वारा भव्य जीवों को महाराज वह निधि दे रहे थे, जिससे यह जीव कर्मों की अनादिकालीन परतंत्रता के बंधन को काटकर एक दिन मृत्यु का विजेता हो शाश्वतिक शान्ति और अनंत शक्ति का स्वामी बनेगा। यह कार्य भौतिक स्वाधीनता प्रदान के गौरव से अनंत गुणा महत्व रखता है। कारण, यह पुद्गल की परतन्त्रता को दूरकर आध्यात्मिक स्वतन्त्र्य का मार्ग बताता है। इस परा विद्या के प्रकाश के आगे तीन लोक का राज्य तुच्छ है। आचार्यश्री के द्वारा वही प्रकाश प्राप्त होता था, जो हिये की आँखें खोल देता था, तब आत्मदर्शन और सदाचार से बढ़कर और कोई
चित्त को नहीं लगती थी ।
सहजपुर के बाद सहपुरा का भाग्य जगा। सारे गाँव के लोग आराध्य देव के स्वागतार्थ लगभग दो मील पहले से इकट्ठे हो गये थे । सबने इन संतों की चरण-रज से अपने को पवित्र किया और उनके दयामय उपदेश को माना । बहुत प्रभावना हुई ।
संघ इसके बाद वाड़ी वाड़ा आया। वहाँ सैकड़ों व्यक्तियों ने शिकार, शराब, मांसाहार
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