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________________ तीस चारित्र चक्रवर्ती आचार्य महाराज के दर्शन की इच्छा व्यक्त की । आचार्य - रत्न देशभूषण महाराज ने आचार्य महाराज के श्रमण संस्कृति पर महान् उपकार का उल्लेख करते हुए पूज्य पंडितजो को उन महान् ऋषिराज का कल्याणकारी जीवन चारित्र जनजन तक पहुँचाने के पुण्य कार्य हेतु आशीर्वाद दिया था । उपस्थित साधु- संघ एवं भक्तजनों ने भी इस ग्रंथराज के प्रति अपने आदरभाव व्यक्त किये थे । पूज्य पंडितजी ने स्व. पूज्य चारूकीर्तिजी भट्टारक श्रवणबेलगोला, श्रीमान् मंजैय्या हेगड़े धर्मस्थल, सररोठ भागचंदजी सोनी अजमेर, श्री मूलचन्दजी कापड़िया, संपादक जैनमित्र, सूरत आदि को ग्रंथ की प्रति भेंट की थी । ' चारित्र चक्रवर्ती' ग्रंथ की श्रमण एवं श्रावक वर्ग ने आदरपूर्वक प्रशंसा की । बडगांव ग्राम में मुझे पंडित जी के साथ दिनांक १२. १२.५३ को परम पूज्य वर्धमान सागरजी महाराज (आचार्य महाराज के ज्येष्ठ भ्राता) के दर्शन का सौभाग्य मिला। उस समय महाराजजी ने पूज्य दादाजी को आशीर्वाद देते हुए कहा था- "आपने यह अत्यंत चिरस्मरणीय कार्य किया है। यह अजरामर है ।" उन साधुराज ने यह भी कहा था- "यदि इस युग में केवलज्ञान होता, तो आपको अवश्य होता"। एक क्षण रूकते हुए उन्होंने आगे कहा-“मगर इन कपड़ों के साथ नहीं होगा । इन्हें अलग करें। बिना पिच्छी, कमण्डलु के कल्याण नहीं ।" उसी समय परम पूज्य समंतभद्रजी महाराज के दर्शन एवं आशीर्वाद का लाभ पूज्य पंडितजी ने बाहुबली क्षेत्र में लिया। विद्वत्वर्ग ने पू. पंडितजी की भूरि-भूरि प्रशंसा की एवं साधुवाद दिया । सन् १९७६ में परम पूज्य आचार्य विद्यानंदजी महाराज के सान्निध्य में भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाणोत्सव के अवसर पर 'चारित्र चक्रवर्ती' ग्रंथ के रचयिता के नाते पूज्य पंडितजी का सम्मान किया गया था। 1 चारित्र चक्रवर्ती आचार्य महाराज के स्वर्गवास के उपरांत पूज्य पंडितजी ने चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ की श्रृंखला के ही रूप में 'आध्यात्मिक ज्योति' ग्रंथ लिखा तथा आवश्यक संशोधन, संवर्धन के उपरांत इस ग्रंथ का द्वितीय संस्करण १९७२ में परमपूज्य आचार्यरल १०८ श्री देशभूषण जी महाराज की कृपा से प्रकाशित हुआ एवं आचार्यरत्न १०८ श्री बाहुबलीजी महाराज की कृपा से १६८६ में तृतीय संस्करण प्रकाशित हुआ । इस ग्रंथराज के अनुवाद मराठी, कन्नड़ भाषा में भी प्रकाशित हुए । तथा ग्रंथ के लघु संस्करण भो निकले। पूज्य पंडितजी के देहावसान के करीब ६ माह पूर्व प्रोफेसर पद्मराज, हासन, कर्नाटक द्वारा कन्नड़ भाषा में अनुवादित ग्रंथ प्रकाशित हुआ । इसमें पूज्य पंडितजी की कुछ मान्यताओं के विपरीत सामग्री की उनके स्पष्ट निर्देशों के बावजूद समाविष्टि से ' पूज्य पंडितजी को अत्यधिक दुःख हुआ था । हमारे बड़े भाई पंडित श्रेयांसकुमार जी दिवाकर के प्रयास के फलस्वरूप ' चारित्र चक्रवर्ती' ग्रंथ के चतुर्थ संस्करण का प्रकाशन परम पूज्य महान् तपस्वी १०८ गुरूदेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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