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________________ तीर्थाटन १६५ के कारण सचमुच में शिवपुरी मानते हैं और इस सम्बन्ध में अन्य धारणाओं को कल्पना कहते हैं । इसी काशीनगरी में महाराज विश्वसेन के यहां माता वामादेवी के गर्भ से भगवान पार्श्वनाथ प्रभु का पौष कृष्णा एकादशी को जन्म हुआ था । भगवान के पिता का नाम अश्वसेन जी विख्यात हैं। माता ब्रह्मादेवी कही गयी हैं। कहा भी है जनमें त्रिभुवन सुखदाता, एकादसि पौष विख्याता श्यामा तन अद्भुत राजैं, रवि कोटिक तेज सुलार्जे ॥ भगवान जब आठ वर्ष के हुए उस समय का वर्णन करते हुए कवि उनके जीवन पर इस प्रकार प्रकाश डालता है - भये जब अष्टम वर्ष कुमार धरे अणुव्रत महा सुखकार ॥ पिता जब आन करी अरदास, करो तुम ब्याह वरो मम आस ॥ तब नांहि कहे जगचंद, किए तुम काम कषाय जु मंद । चढ़े गजरात कुमारन संग, सु देखत गंग तनी सुतरंग ॥ यौवन अलंकृत गरहे थे, और उसके सौंदर्य को देख रहे थे, कि उनकी दृष्टि एक पंचाग्नि तप करने वाले साधु पर पड़ी। यह कमठ का जीव था । उसे देख कुमार के मन में दया आई, उन्होंने कहा 'ऐसा हिंसा - तप मत करो।' जब उस तपस्वी ने न ही सुना, तब इन्होंने एक लकड़ी के भीतर जलते हुए नाग नागिन को दिखाया। उनको जलते हुए नाग युगल पर करुणा आई, अतः उन करुणा - निधान पार्श्व प्रभु के मरणासन्न नाग युगल ने पुण्य वचन सुने, इससे उन जीवों का उद्धार हो गया। महत्व की बात इस समय पार्श्वप्रभु सोलह वर्ष के थे। पार्श्वनाथ भगवान की पूजा में जो यह लिखा है कि नागयुगल के प्रसंग को प्राप्त कर उन्होंने दीक्षा ली, वह कथन उत्तरपुराण रूप आगम के विरुद्ध है। उत्तरपुराण में कहा है भगवान् तीस वर्ष के हुए। उनका जन्मोत्सव मनाया जा रहा था। अयोध्या के जयसेन नरेश ने उस पावन प्रसंग पर दूत आदरसूचक भेंट भेजी थी । के साथ दूत से भगवान ने अयोध्या वासियों के कुशलक्षेम की वार्ता पूछी, तब दूत ने कहा, प्रभो, अयोध्या में भगवान् ऋषभदेव आदि अनेक महापुरुष हुए । उनके प्रसाद से सर्वत्र आनन्द है। इस वार्ता को सुनते ही भगवान् के मन में यह विचार आया कि उन पुरातन पुरुषों की लम्बी आयु थी | मेरी १०० वर्ष आयु में तीस वर्ष व्यर्थ में चले गये । अब मुक्ति हेतु तुरन्त उद्योग करना चाहिए। इस प्रकार उनमें वैराग्य भाव जागा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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