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तीर्थाटन तथा वीरनाथ जिन भी बालब्रह्मचारी तीर्थकर हुए हैं। पावापुरी का पुण्यस्थल वीरप्रभु की पवित्र स्मृति को जागृत करते हुए बताता है कि यथार्थ में ये पूर्ण सिंह निकले जो संपूर्ण कर्मों का नाशकर वहाँ से सिद्ध स्थल में विराजमान हो गये। उन वीर प्रभु की अचिन्त्य महिमा है। आचार्य कहते हैं :
ये वीर पादौ प्रणमंति नित्यं ध्यानस्थिताः संयमयोगयुक्ताः।
ते वीतशोका हि भवंति लोके संसार दुर्गं विषमं तरंति॥ अर्थ : जो जीव ध्यान में स्थित होकर तथा संयम और योग से संयुक्त होते हुए वीर भगवान के चरणों को सदा प्रणाम करते हैं, वे जगत में वीतशोक होते हैं तथा विषम संसार के सकंटों के पार पहुंचाते हैं। आज उन्हीं वीर प्रभू का तीर्थ प्रवर्तमान है। उन प्रभु की सुन्दर शब्दों में इस प्रकार स्तुति की गई है:
वीरः सर्व सुरासुरेंद्र महितो वीरं बुधाः संश्रिताः । वीरणाभिहतः स्वकर्म निचयो वीराय भक्त्या नमः ॥ वीरातीर्थ मिंद प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपः।
वीर श्री द्युतिकांति कीर्ति धृतयो हे वीर ! भद्रं त्वयि॥ अर्थ : वीर भगवान सकल सुरासुरेन्द्रों के द्वारा स्तुत्य हैं, महान् ज्ञानी पुरुष वीर का आश्रय लेते हैं, वीर के द्वारा अपने कर्मों का समुदाय नाश किया गया, वीर के लिए भक्ति पूर्वक नमस्कार है। यह अतुल तीर्थ वीर से उत्पन्न हुआ, वीर की तपश्चर्या घोर है, वीर में श्री अहिंसा, धर्म, कान्ति, कीर्ति तथा धृति हैं। हे वीर ! आप में कल्याण का निवास है। इस स्तुति में समस्त कारकों द्वारा वीर भगवान का कथन करते हुए उनके गुणों का वर्णन किया है। ___आचार्य महाराज की वीर भगवान में बड़ी भक्ति तथा श्रद्धा रही है। एक दिन मैनें पूछा, “महाराज! आपकी तपस्या तथा आत्म तेज के ही कारण बड़े बड़े असंभव दिखने वाले काम संभव हो जाते हैं।"
महाराज बोले, “इसमें हमारा कुछ नही है। यह सब महावीर भगवान की कृपा है।" उन तीर्थकर महावीर प्रभु की निर्माण भूमि की साक्षात् वंदना करके संघ गुणावा आया और उसने भगवान के मुख्य गणनायक गौतम स्वामी के निर्वाण स्थल की सभक्ति वंदना की और उनकी अद्भुत, आध्यात्मिक, विकासपूर्ण जीवन का स्मरण कर सिद्ध पद प्राप्त आत्मा को प्रणाम किया, पश्चात् संघ बढ़ता हुआ वैशाख सुदीह को हिन्दुओं के मुख्य तीर्थ गया पहुंचा। जैन, अजैन जनता ने बड़े प्रेम और भक्ति पूर्वक संघ का स्वागत किया। हिंदूसभा ने महाराज के शुभागमन की सूचना की विज्ञप्ति प्रगट कर नगरवासियों से उनके स्वागतार्थ प्रेरणा की थी। महाराज के उपदेश
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