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चारित्र चक्रवर्ती
होते हैं। मध्य का मंदिर श्वेत संगमरमर का बड़ा मनोज्ञ मालूम होता है । पूर्णिमा की चांदनी में उसकी शोभा और भी प्रिय लगती है। सरोवर के कारण मंदिर का सौन्दर्य बड़ा आकर्षक है। भगवान का अंतरंग जितना सुन्दर था, उनका शरीर जितना सौष्ठव संपन्न था, उतना ही बाह्य वातावरण भी भव्य प्रतीत होता है। सरोवर में बड़ी बड़ी मछलियाँ स्वच्छंद क्रीड़ा करती हैं, उन्हें भय का लेश भी नहीं है, कारण वहाँ प्राणी मात्र को अभयप्रदान करने वाली वीर प्रभु की अहिंसा की शुभ चंद्रिका छिटक रही है। मंदिर के पास पहुंचने के लिए सुन्दर पुल बना है। विदेशी भी पावापुरी के जल मन्दिर के सौन्दर्य की स्थायी स्मृति फोटो के रूप में साथ ले जाया करते हैं।
निर्वाण काल तथा आसन
पावापुरी की वंदना से बढ़कर सुखद और कौन निर्वाण स्थल होगा ? यहाँ पहाड़ी की चढ़ाई का नाम निशान नहीं है, लम्बा जाना नहीं है। शीतल समीर संयुक्त जलमन्दिर जाने के बाद मध्य में वहाँ से निर्वाण पद प्राप्त करने वाले प्रभु वर्धमान जिनेन्द्र के चरण चिह्न विद्यमान हैं, जो निर्वाण स्थल के स्मारक हैं। आचार्य यतिवृषभ ने लिखा है कि वीर भगवान ने कार्तिक कृष्णाचतुर्दशी के प्रभात काल में स्वाति नक्षत्र रहते हुए पावापुर से अकेले ही सिद्धपद प्राप्त किया था, उनके साथ में और कोई मुनि मोक्ष नहीं गए। भगवान पार्श्वनाथ स्वामी के साथ छत्तीस मुनियों ने श्रावण सुदी सप्तमी को संध्या के समय प्रदोषकाल में सम्मेदाचल से मोक्ष प्राप्त किया था।
यह भी स्मरण योग्य है कि भगवान् ऋषभदेव ने चौदह दिन पूर्व, महावीर स्वामी ने दो दिन पूर्व, शेष बाईस तीर्थकरों ने एक माह पूर्व योग से विनिवृत्त होने पर मुक्ति को प्राप्त किया था। भगवान ऋषभनाथ, वासुपूज्य, नेमिनाथ, पल्यंक बद्ध आसन से तथा शेष इक्कीस तीर्थकरों
यस आसन से मोक्ष प्राप्त किया था। इससे जलमंदिर में जाकर सिद्ध पद प्राप्त महावीर भगवान के विषय में चिंतवन करते समय उनकी कायोत्सर्ग मुद्रा का ध्यान करना उचित है। अब दि. जैन कोठी के मंदिरजी में भगवान् महावीर प्रभु की खड्गासन युक्त मूर्ति ब्र. पण्डिता चन्दाबाई आरा की ओर से विराजमान हुई है, जो आत्मचिंतन में सहायता प्रदान करती है। उन्होंने आचार्य महाराज की भी एक मूर्ति मंदिरजी में विराजमान की है । वास्तविक सिंह भूमि
वर्धमान भगवान के संघ में से पूर्वधर तीन सौ, शिक्षक अर्थात उपाध्याय निन्यानवे सौ, अवधिज्ञानी तेरह सौ, केवली सात सौ, विक्रिया ऋद्धिधारी नौ सौ, विपुलमति वाले पांच सौ और वादी मुनि चार सौ थे । छत्तीस हजार आर्यिकाओं की संख्या कही है। प्रमुख आर्यिका चंदना थीं । वासुपूज्य भगवान की भांति मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ
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