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________________ १८६ चारित्र चक्रवर्ती चार दधिमुख, और आठ रतिकर पर्वतों के शिखर पर उत्तम रत्नमय एक एक जिनेन्द्र मंदिर है। इन मंदिरों में देवगण जल, गंध, पुष्प, तंदुल, उत्तम नैवेद्य, फल दीप, धूपादिक द्रव्यों से जिनेन्द्र प्रतिमाओं की स्तुतिपूर्वक पूजा करते हैं। तिलोयपण्णत्ति सदृश प्राचीन आगम के आधार मिल जाने से शोध के नाम पर बनाई जाने वाली हवाई कल्पना समाप्त हो जाती है। कोई-कोई कहते हैं, जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक जैन-संस्कृति का अंग नहीं है । उनको त्रिलोकसार के इस कथन से अपने विचारों का शोधन करना चाहिए। स्वर्ग में जन्म लेने के उपरान्त सम्यक्त्वी देव जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक - पूजन करते हैं : धम्मं पसंसिदूण व्हादूण दहे भिसेयलंकारं । लद्धा जिणाभिसेय कुव्वंति सद्दिट्ठी ॥ ५५२ ॥ "जिनाभिषेकं पूजां कुर्वन्ति सदृष्टयः" इन शब्दों से अभिषेक की अनादिकालीन प्रवृत्ति सिद्ध होती है। __ शास्त्रों में कहा गया है कि देवता लोग भगवान् की दिव्वेण वासेण अर्थात् दिव्य वस्त्रों से पूजा करते हैं। इसका स्पष्टीकरण आचार्य यतिवृषभ ने किया है कि नंदीश्वर में देवता लोग दिव्य चंदोवा आदि के द्वारा भगवान की पूजा करते हैं । वे देव विस्तीर्ण तथा लटकते हुए हारों से संयुक्त तथा नाचते हुए चमर व किंकिणियों से युक्त अनेक प्रकार के चंदोवा आदि से जिनेश्वर की पूजा करते हैं। महान जैन महोत्सव ___शिखरजी में जिनेन्द्र पंचकल्याणक महोत्सव में बड़े वैभव के साथ जिन भगवान की महापूजा होती थी। भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी का उत्सव इन्दौर के धन कुबेर सर राव राजा दानवीर सेठ हुकुमचंदजी की अध्यक्षता में बड़े उत्साह और उल्लासपूर्वक पूर्ण हुआ था। उस समय भीड़ अपार थी। लाउडस्पीकर का सन् १९२८ तक अपने देश में आगमन न हआ था, अतएव महोत्सव में लोगों का हल्ला ही हल्ला सुनाई पड़ता था। दिगम्बर जैन महासभा का नैमित्तिकं अधिवेशन ब्यावर के धार्मिक सेठ तथा आचार्य श्री के परमभक्त मोतीलाल जी रानीवालों के नेतृत्व में हुआ था। उस समय समाज के बंधन शिथिल करने वाले विधवा विवाहादि आन्दोलनों के निराकरण रूप धर्म तथा समाज उन्नति के प्रस्ताव पास हुए थे। महोत्सव की स्मृति में शिखर जी पर एक संस्कृत में शिलालेख लगाया गया था, उसमें महोत्सव का सब हाल संक्षेप में ज्ञात होता है तथा आचार्य महाराज के संघ का भी विवरण विदित होता है: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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