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________________ १३८ चारित्र चक्रवर्ती पिपासा को जगाया करती है। वहां जाकर विचारक आत्मा हृदय से यही कहेगा : खुद को खुद ही में ढूंढ, खुद को तू दे निकाल। फिर तू ही खुद कहेगा, खुदा हो गया हूँ मैं। शिखरजी विहार की विज्ञप्ति संपूर्ण बातों को विचार कर ही शांतिसागर महाराज ने शिखरजी की ओर संघ के साथ विहार की स्वीकृति दी थी। यह हर्षप्रद समाचार कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा वीर संवत् २४५३, सन् १९२७ के दिन विज्ञप्ति रूप इन शब्दों में प्रकाश में आया : संघ विहार (शिखरजी की यात्रा) "संपूर्ण दि. जैन समाज को सुनाते हुए आनन्द होता है कि हम कार्तिक के आष्टाह्निक पर्व के समाप्त होते ही मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका समवेत चतुर्विधसंघ को चलाने वाले हैं। यह संघ कुंभोज (बाहुबली पहाड़) कोल्हापुर दक्षिण की तरफ से निकलेगा और शिखरजी की यात्रार्थ प्रयाण करेगा। श्री रत्नत्रयपूत परमशांत दशलाक्षणिकधर्म विभूषित १०८ श्री आचार्य शांतिसागर महाराज मुनि संघ सहित साथ में विहार करेंगे। इस संघ में तीन चार मुनि, तीन ऐलक व एक क्षुल्लक व करीब पांच छह ब्रह्मचारी तथा दो तीन आर्यिकाओं ने विहार करना निश्चय कर लिया है। इनके सिवाय और भी कुछ मुनि ब्रह्मचारी ऐलकों के इस मुनि संघ के साथ में निकलने का अंदाज है। चतुर्थकाल के मुनीश्वरों का जैसा कुछ स्वरूप था ठीक वैसा ही स्वरूप परमशांत आचार्य श्री १०८ शांतिसागर महाराज का है। आज पर्यन्त यह संघ दक्षिण में ही विहार करता था, परन्तु भव्यों के पुण्योदय से अब आगे इनका विहार उत्तर प्रांत में होगा। इस कारण सर्व ही समाज को धर्म का लाभ होगा। (१) यह संघ दक्षिण महाराष्ट्र से श्री शिखरजी पर्यन्त पैदल रास्ते से जायगा। (२) संघ के साथ आनेवाले धर्म बांधवों की सर्व प्रकार की व्यवस्था की जायगी। किसी को किसी प्रकार का कष्ट न हो ऐसी सावधानी रखी जायेगी। (३) संघ रक्षण के लिए पोलिस का इंतजाम साथ में किया गया है। (४) संघ के साथ में श्री जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा का समवशरण रहेगा। (५) संघ में धर्मोपदेश तथा धर्मचर्चा का योग रहे, इसलिए विद्वान पंडितों की योजना की गई है। (६) संघ में औषधि द्वारा रोग चिकित्सा का इंतजाम रहेगा। (७) संघ में भोजन सामान का इंतजाम रहेगा जिससे कि अतिथियों के योग्य शुद्ध सामान भी मिल सके। (८) संघ में जो जितने दिन पर्यन्त चाहेंगे, रह सकेंगे। जो पूरी यात्रा करना चाहेंगे, उनका खास इंतजाम किया जायगा। सर्व बांधवों को इस प्रकार से विशेष लाभ होना समझकर ही ऐसा इंतजाम रक्खा गया है। गरीब बांधवों की भी सर्व प्रकार की तजवीज रहेगी। इसलिए सर्व बांधवों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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