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________________ १३४ आचार्य-पद इस संदेह का सामाधान कठिन नहीं है। विचित्र शक्तियों का विकास जिनेन्द्र भक्ति और संयम साधना के द्वारा हुआ करता है। संयमी जीवन के प्रशान्त क्षणों में बड़े महत्व की बातें निर्मल आत्मा में स्वयं प्रकाशित होती हैं, जिन्हें बड़े-बड़े शास्त्रज्ञ नहीं जानते। दर्पण सदृश स्वच्छ हृदय में तत्त्व का स्वयमेव प्रतिबिम्ब दिखा करता है। यह अपूर्वता जघन्य आत्माओं में नहीं पाई जाती है। मांधीजी का अनुभव भारतीय जीवन में जादूगर के समान जागृति कराने वाले गान्धीजी का यह अनुभव महत्वपूर्ण है, “मैंने अपने जीवन में जो भी अद्भुत कार्य किए हैं, वे तर्क से प्रेरित होकर नहीं किए है, किन्तु निसर्ग प्रवृत्ति (instinct) से हुए हैं। सन् १९३० की डांडी की नमक यात्रा को ही लीजिए। मुझे इस बात की तनिक भी शंका नहीं थी कि नमक कानून को भंग करने से वह किस प्रकार समाप्त हो जायगा। पं. मोतीलाल नेहरू तथा अन्य मित्र घबड़ा रहे थे और वे यह नहीं जानते थे कि मैं आगे क्या करूंगा। मैं भीमको कुछ नहीं कह सकता था, कारण मुझे भी इस बात का पता न था। किन्तु प्रकाश के सदृश वह विचार आया और तुम्हें मालूम है कि वह सारे देश को एक छोर से दूसरे छोर तक हिला देने में पर्याप्तथा।" महान् तपश्चर्या द्वारा जब अनादि के कर्मों का ध्वंस होकर आत्मा के अनंतगुण अभिव्यक्त हो जाते हैं, तब विशेष पदार्थों का बोध हो जाना कैसे आश्चर्यप्रद होगा? सांख्य दर्शन में सात्विक गुण को प्रकाशक कहा है-“सत्वं लघु प्रकाशकम्"। अहिंसा पूर्ण निर्दोष और श्रेष्ठ तपश्चर्या के क्षेत्र में आचार्यश्री का अप्रतिम स्थान है। कठिन से कठिन स्थिति में धैर्य को धारण करते हुए आत्मत्व के प्रकाश द्वारा जीवन को संस्कृत बनाना उनकी विशेषता है। जयपुर में भयंकर संकट आने पर भी मेरुवत स्थिरता जयपुर में खानियों की नशियां में पूज्यश्री ने निवास किया था। एक दिन नशिया के द्वार को किसी भाई ने भूल से बन्द कर दिया, पवन पर्याप्त मात्रा में नहीं पहुंचने से 1. “Whatever striking thing I have done in life, I have not done prompted by reason, but by instinct. Take the Dandi salt march of 1930, I had not the ghost of asuspicion how the breach of the salt law would work itself out, Pandit Motilal and other friends were fretting and did not know what I would do, and I told them nothing as I myselfknew nothing about it. But like a flash it came and as you know it was enough to shake the country from one end to another." -LFischer : ‘Mahatma Gandhi' P. 329 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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