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________________ ११० चारित्र चक्रवर्ती सूर्योदय होने पर हम महाराज के दर्शन को पहुँचे, तब महाराज ने कहा- आज रात को हमारा काम समाप्त हुआ सा प्रतीत होता था। सुनते ही चित्त घबड़ा गया। मैंने पूछा- महाराज क्या हुआ? महाराज ने बताया- जोर की खाँसी आई और उसमें जो श्वास बाहर निकली, वह कुछ मिनटों तक वापिस नहीं खींची जा सकी। नाड़ी भी जाती रही और शरीर भी शून्य सा पड़ गया, फिर कुछ समय के उपरांत सब बातें धीरे-धीरे सुधरी थी। उस समय महाराज के मुख से कठिनता से शब्द निकलते थे, किन्तु दीनता या घबड़ाहट या कराहना आदि का लेष मात्र भी नहीं था। आत्मा में अद्भुत बल उस समय दिखता था। वहाँ मध्याह्न के बाद दो बजे के लगभग दशलक्षणी पर्व का शास्त्र-वाचन होता था। शास्त्र-वाचन मैं ही करता था। महाराज ने कहा, "आज हम शास्त्रसभा में नहीं जा सकेंगे, आप जाकर शास्त्र वांच लेना।" मैंने कहा, “महाराज आपकी सेवार्थ ही मैं यहाँ आया हूँ, लोगों को शास्त्र सुनाने नहीं आया हूँ। मैं आप ही के पास रहूँगा।" इसके पश्चात् महाराज की कुटी के समक्ष ही मैं शास्त्र का वाचन करता रहा । धीरे-धीरे महाराज की प्रकृति में परिवर्तन होता चला, किन्तु उस विपत्ति के समय महाराज की स्थिरता, धर्म की श्रद्धा, तथा आत्मबल कभी भी नहीं भुलाये जा सकते। आश्चर्यजनक शारीरिक सामर्थ्य, किंतु श्रेय जिनेन्द्र भक्ति को एक दिन महाराज बोले कि कवलाना सदृश चिन्ताजनक अवस्था मोडलिंव गांव में हो गई थी। कुटी के बाहर तक जाने का सामर्थ्य नहीं रहा था। उस समय ब्र.जीवराज गौतमचंद जी दोसी महाराज के दर्शनार्थ आए थे।ब्रम्हचारीजी को महाराज के शरीर की स्थिति खतरनाक दिखी और उन्होंने महाराज को समाधिमरण लेने की सलाह दे दी। महाराज ने उनसे कहा था कि तुम्हें हमारे मरने की क्यों फिकर है ? हम अपना हाल स्वयं जानते हैं। तपस्या करते हुए हमें लगभग चालीस वर्ष हो गये। हमारा अंतिम समय कब निकट आएगा, यह हमें स्वयं ज्ञात हो जायेगा। हमें सलाह की जरूरत नहीं है। इसके अनंतर दूसरे दिन महाराज ने वहाँ से विहार कर दिया। जो एक दिन पहले चार डग भी नहीं जा सकते थे, आज वे दो-तीन मील चले, दूसरे दिन और अधिक चले। लोगों को चकित करते हुए महाराज बारामती आ गये और वहाँ के अनुकूल जल-पवन से उनका स्वास्थ्य सुधरने लगा। मैंने पूछा- “महाराज जब आप में तनिक भी हिलने-डुलने की शक्ति नहीं थी, तब आप इतनी दूर कैसे जा सके ?" महाराज बोले-“भगवान की कृपा है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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