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________________ १०६ चारित्र चक्रवर्ती जिन-भक्ति के प्रभाव से बड़े-बड़े विघ्न दूर होते रहे हैं। श्रेष्ठ तपस्वी होते हुए भी मैंने उनमें कभी भी अहंकार या ममत्व का दर्शन नहीं किया।" विलक्षण स्मृति, महान् क्षयोपशम तथा अद्भूत अवधान - नेमिसागर महाराज ने यह भी कहा, “पूज्य महाराजजी की स्मृति बड़ी अद्भुत है। योग्य अवसर में उनकी स्मृति तथा क्षयोपशम ऐसा समाधान उपस्थित करता है कि प्रश्न की गुंजाइश ही नहीं रहती। महाराजश्री के आने-जाने वाले सारे भारत के व्यक्ति इसी बात से सुपरिचित हैं कि जो बात या वस्तु उनके समक्ष एक बार आ गई, उसको वे कभी नहीं भूलते हैं। उनके भारत भ्रमण में हजारों आदमी परिचय में आये, किन्तु जब भी कोई व्यक्ति किसी स्थान का आता, तो उसकी सारी बातें इनके स्मृतिपथ में आ जाती थी।" ___ महाराज के मुख से हमने भी कई बार सुना है कि हम जिस चीज को एक बार देख लेते हैं या शास्त्र की जिस बात को एक बार सुन लेते हैं, उसे कभी नहीं भूलते हैं। इस प्रकार चारित्र के धन के साथ, क्षयोपशम की भी असाधारण सम्पत्ति उनके पास रही है। बड़े-बड़े ग्रंथों का आद्योपान्त स्वाध्याय अनेक बार हो चुका है। प्राय: ऐसा कोई महत्व का प्रकाशित जैन ग्रंथ नहीं बचा होगा, जो इनके स्वाध्याय का विषय न हुआ हो। ____ महाराज में अनेक अवधान भी पाये जाते थे। १९५१ की दीपावली के समय हम पूज्यश्री के पास गये थे। उस समय नेमिसागरजी महाराज तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक जैसा महान् ग्रंथ पढ़कर सुना रहे थे। उस बीच में महाराज से मैंने दूसरे किसी विषय की अपनी शंका का समाधान पूछा, तो मेरा उत्तर देने के साथ ही वे उस ग्रंथ के वर्णन को ध्यान देकर सुनने लगे। मैंने कहा, “महाराज अभी मेरे साथ चर्चा करने से आपको ग्रंथ के पूर्वापर संबंध का पता कैसे चलेगा?" उन्होंने कहा, "हमारा उपयोग उसी ग्रंथ के सुनने की ओर भी रहा आया है।"अनेक बातों की अवधारण शक्ति ऐसी ही होती है। ऐसी बातें मैंने महाराज शांतिसागरजी के विषय में चरितार्थ पाई। महान् अनुभवी ज्ञाता एवं सुलझी हुई विद्वतता ज्ञान का अहंकार लिये कई शास्त्री-विद्वान् अपने-अपने स्थान में बैठे सोचते हैं कि इन महाराज ने कोई विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं पाई है, न ये न्यायाचार्य हैं, नन्यायतीर्थ या व्याकरणाचार्य ही हैं, सिद्धांतों के अभिज्ञ शास्त्री भी नहीं हैं। लोकविद्या के विद्वान् यही समझते हैं कि हमारे शास्त्रों का तो ये लेष भी न जानते होंगे, किन्तु जैसे मानस्तंभ के दर्शन से अहंकार दूर होकर भक्ति जागृत होती है, ऐसे ही इनके संपर्क में आकर चर्चा करते समय यह पता चलता है कि बड़े बड़े आचार्यादि उपाधि धारियों, शास्त्रियों, ग्रेज्यूएटों आदि से पूज्यश्री के प्रश्नों का उत्तर देते हुए नहीं बनता था और उन कठिन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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