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सोलह
चारित्र चक्रवर्ती है। इस ग्रंथ में विशेषता यह है कि आचार्यश्री की कुल परंपरा को निर्दोष व मुनिपद ग्रहण करने के योग्य बतलाने वाले, अठारह पीढ़ीयों को दर्शाने वाले वंश वृक्ष का भी मुद्रण किया गया है, जिसे कि हम इस लेख के पश्चात् मुद्रित कर रहे हैं।
इसका प्रकाशन संवत् १९६० सन् १९३४ में किया गया था।
इसका आद्य वक्तव्य महान उद्योगपति, स्वाध्याय प्रेमी, मराठी मासिक जैन बोधक, जो कि आज भी अनवरत गतिशील है, के संपादक, महान दानदाता व आचार्य श्री के अत्यंत विश्वस्त माननीय श्री रावजी सखाराम दोषी, जो कि दूसरे दशक के महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, ने लिखा है।। चारित्र-चक्रवर्ती का आधार संभवतः यही चारित्र ग्रंथ है।।
इसके अलावा हमें बहुत ढूँढने पर दहीगाँव (महाराष्ट्र) में उस काल में प्रकाशित समाचार पत्रों व मासिक पत्रों का भण्डार ही मिल गया, जिनमें कि चारित्र चक्रवर्ती में संकलित सामग्री आद्योपांत भरी हुई थी। इन-मासिकों व समाचार पत्रों में जैन बोधक, जैन मित्र, जैन गजट, खण्डेलवाल हितेच्छु आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।।
उस समय का शायद ही कोई अखबार या पत्रिका होगी जिसमें कि आचार्यश्री से संबंधित सामग्री का अभाव होगा, क्यों कि उस समय बगैर आचार्य श्री के समाचारों के प्रत्येक जैन पत्र अपूर्ण समझा जाता था, अतः आचार्य श्री से संबंधित नवीन से नवीन समाचार प्राप्त करने व मुद्रित करने हेतु प्रत्येक जैन पक्ष उत्सुक रहता था।
एक उदाहरण देना यहाँ उपयुक्त होगा।
गुजरात में गोरल चातुर्मास के पश्चात् ईडर रियासत की ओर भ्रमण करते हुए आचार्य श्री से एक आदिवासी समूह प्रभावित हुआ व उनके मुखिया ने आचार्य श्री को बहुत ही मार्मिक प्रतिज्ञा पत्र लिख कर दिया कि आज से हमारा कुनबा शाकाहार भोजन की प्रतिज्ञा करता है व मांसाहार एवं शिकार करने का त्याग करता है।। यह पत्र खण्डेलवाल हितेच्छु, सन् १९३७ के संस्करण में छपा है॥ ___ इसी प्रकार आचार्य श्री को मार्ग में भिन्न-भिन्न रियासतों से प्राप्त बाधायें व सहयोग एवं उन बाधाओं को पार करने व सहयोग को प्राप्त करवाकर देने वाले सज्जनों के कार्य मय ऐतिहासिक प्रमाणों(रियासतों के भिन्न-भिन्न भाषाओं में प्रसारित आदेशों) के जैन बोधक के विशेषांक में छप चुके थे। यह विशेषांक सम्पूर्ण भारत वर्ष में दिगम्बर मुनि को विचरण हेतु आचार्य श्री के निर्देशन में सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज द्वारा किये गये पुरुषार्थ का आँखों देखा हाल है। ___ अर्थात् उस समय का शायद ही कोई अखबार या पत्रिका होगी जिसमें कि आचार्यश्री से संबंधित सामग्री का अभाव होगा, क्यों कि बगैर आचार्य श्री के समाचारों के प्रत्येक जैन पत्र अपूर्ण समझा जाता था व आचार्य श्री से संबंधित नवीन से नवीन समाचार प्राप्त
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