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________________ संयम-पथ ८१ साधु चर्या के लिए प्रभात में अथवा अपराह्न काल में निकले। यहाँ अथवा के स्थान में अपने अंत:करण को ही आगम और परम्परा का प्रतीक मान कोई-कोई लोग और शब्द रख कर प्रभात में और अपराह्न में निकलना उचित मानते थे। ऐसे लोगों को महाराज ने बताया था, “आहार के लिए संकल्प करके दो बार निकलने से एक आहार की प्रतिज्ञा दूषित होती है, इसलिये सबेरे या दोपहरी के बाद एक ही बार चर्या को निकलना धर्म का मार्ग है। चर्या को निकलते हुए आहार न पाने वाले मुनि का उपवास नहीं कहा जायगा। आहार का त्याग करना और आहार का न मिलना, दोनों स्थिति में जो अंतर है, उसे ज्ञानवान आदमी सहज ही विचार सकता है।" आगम की आज्ञा का बारीकी से पालन एक बार इन नवीन ऐलक महाराज को एक धार्मिक गृहस्थ ने पड़गाहा। चौके तक पहुंच गये। आहार लेने को तैयार ही थे कि इनकी दृष्टि घड़ी पर पड़ी। जाड़े में सूर्य जल्दी डूबता है। आहार करते करते इतना समय हो जाएगा कि रात्रि भोजन का दोष लग जाएगा। उस समय सूर्य का प्रकाश था। गिरनार पर्वत की चढ़ाई के कारण जठराग्नि भी स्वभावत: प्रदीप्त हो रही थी, फिर भी भोजन करने से कुछ मिनट रात्रि भोजन त्याग व्रत को सदोष बना देंगे, इसलिये तत्काल ही आहार की लोलुपता का त्याग कर महाराज बाहर चले आए। लोगों ने कारण पूछा। इन्होंने बताया कि भोजन की विधि में कोई दोष नहीं था, किन्तु विलम्ब से भोजन करने के कारण व्रत में दोष आने की संभावना थी, क्योंकि सूर्य अस्त होने के तीन घड़ी (७२ मिनिट) पूर्व साधु को आहार छोड़ देना चाहिए। इस प्रकार बारीकी के साथ व्रतों के पालन में प्रवृत्ति करने वाले इन महापुरुष के महत्व का कौन विवेकी न मानेगा? इस प्रकार निर्दोष धर्माचरण के द्वारा इनकी कीर्ति सर्वत्र फैलती जा रही थी। वाहन त्याग गिरनार से लौटकर ये सांगली के समीपवर्ती कुण्डल नाम के पहाड़ से अलंकृत स्टेशन पर उतरे। वहाँ के जिन मंदिरों की वंदना की और जीवन भर के लिये सवारी पर बैठने का त्याग कर दिया। आज के युग में महाराज सदृश्य आध्यात्मिक निधि के अधिपति जिन मंदिर की वंदना की आवश्यकता को अनुभव करते हुए सर्वदा जिनदर्शन को तत्पर रहते थे, किन्तु आश्चर्य है, कि अनर्थ के मूलअर्क के धनी अथवा लौकिक शास्त्रों का अल्प परिचय प्राप्त करने वाले आत्म-प्रकाश हीन व्यक्ति गृहस्थोचित पवित्र कर्तव्यों को भूल जिन भगवान के दर्शन की आवश्यकता को अनुभव नहीं करते हैं । इस सत्य को कौन विवेकी न स्वीकार करेगा, कि वीतराग की शरण लिये बिना इस आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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