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संयम-पथ करने की। जिनेन्द्र की आज्ञानुसार प्रवृत्ति करते हुए मृत्यु उन्हें बड़ी प्रिय मालूम पड़ती थी और आगम के विरुद्ध जीवन को वे आत्मा की मृत्यु सोचते थे। उस कठिन परिस्थिति में उनकी उग्र तपश्चर्या का कौन अनुमान कर सकता है ? अत्यंत बलशाली शरीर को स्थिर रखने के लिए योग्य काल में आहार देना आवश्यक है। भोजन न मिलने से बड़ेबड़े भक्त भगवान को भुला दिया करते हैं। एक हिन्दू संत कहते हैं, “भूखे भजन न होय गोपाला, यह लो अपनी कंठी माला।" क्षुधा की असह्य वेदना में मनुष्य पत्ते और घास तक खाकर इन प्राणों के रक्षण के लिए तत्पर होता है। संसार में ऐसा कोई अनर्थ नहीं है, जिसे पेट की ज्वाला से पीड़ित व्यक्ति न करे। ऐसी लोकस्थिति होते हुए भी महाराज वज्र की तरह अचल रहे। चर्या के लिए वे बराबर निकलते थे। आहार नहीं मिलता था, तो लाभांतराय कर्म का उदय तीव्र है, ऐसा जानते हुए शांत भाव से मंदिर में आकर धर्म ध्यान में अपना समय व्यतीत करते थे। ___ मैंने पूछा, “महाराज ऐसी स्थिति में लोगों के अज्ञान आदि पर तो आपको रोष आता होगा ? ऐसा होना पूर्णतया स्वाभाविक है।"
महाराज ने कहा, "हमने कभी भी ऐसा रोष नहीं किया। उस समय हमारे परिणामों में और भी निर्मलता होती थी। हम यही सोचते थे कि अभी हमारे कर्मों का तीव्र उदय है, इसलिए जैसे कर्म हमने पूर्व में बांधे हैं, उनका फल समता पूर्वक सहन करना चाहिये।" क्रांतिकारी धार्मिक संतराज ___ इस प्रकार दो-तीन वर्ष तक इनके क्षुल्लक जीवन में अवर्णनीय बाधाएँ आती रही, किन्तु ये शांति के सागर ही रहे आये और कभी भी 'ज्वालाप्रसाद' नहीं बने। धीरे धीरे समय बदला और लोगों को महाराज की क्रियाओं का ज्ञान हो गया। इससे विघ्न की घटा दूर हो गई। इस प्रकाश में तो महाराज प्रचलित मिथ्या प्रवृत्तियों का उच्छेद करने वाले प्रचण्ड विद्रोही के रूप में दिखते हैं। उन जैसा सुधारक कहाँ मिलेगा? आज तो संयम रूपी अमृत के कलश को फोड़कर फेकने वाला और विषय विष की प्याली पिलाने वाला पुरुष ही मस्तक पर सुधारक के मुकुट को धारण करता है। जो सुधार महाराज ने किया और धर्म का निर्दोष मार्ग प्रचलित कराया, उसे देख इन्हें सचमुच में इस युग के धार्मिक क्रांतिकारी महापुरुष कहना होगा। ऐसी ही अनेक शिथिल प्रवृत्तियों में उन्होंने सुधार कर धर्म मार्ग में नवीन जीवन डाला। ___ ऐसे अनुपम वंदनीय मानव की प्रवृति आगम विरुद्ध होगी ऐसा समझने वाला अहंकारी विद्वान् यथार्थ में तत्त्वज्ञों की करुणा का पात्र होगा। यथार्थ में कई लोग निकट जीवन के संपर्क में बिना आये, अपने घर बैठे-बैठे मिथ्या धारणाओं का ताना-बाना बुना करते हैं।
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