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________________ ७२ चारित्र चक्रवर्ती देते हैं और रामचन्द्र जी आदि की पूजा करते हैं, इसी प्रकार इन देवों की पूजा का पर्व समाप्त हो गया। जब तक हमारा आना नहीं हुआ था, इनकी पूजा का काल था। अब जैन गुरु के आ जाने के बाद उनका काम पूरा हो गया, इससे उनको सिरा देना ही कर्तव्य है। जिस तरह आप राम, हनुमान आदि की पूजा करते हैं, इसी प्रकार हमारे मंदिर में स्थायी मूर्ति तीर्थंकरों की, अरहंतों की रहती है, उनकी पूजा करते हैं।" - पूज्यश्री के युक्ति पूर्ण विवेचन से राजा का संदेह दूर हो गया। वे महाराज को प्रणाम कर संतुष्ट हो अपने राजभवन को वापिस लौट गए। मिथ्यादेवों की उपासना का निषेध ___ जैनवाड़ी में एक और महत्वपूर्ण बात हुई। वहाँ जब महाराज जैनियों को मिथ्यादेवों की पूजा के त्याग की प्रतिज्ञा करा रहे थे, तब ग्राम के मुख्य जैनियों ने पूज्यश्री से प्रार्थना की, “महाराज! आपकी सेवा में एक नम्र विनती है।" महाराज ने बड़े प्रेम से पूछा- “क्या कहना है कहो?" जैन बंधु बोले- “महाराज इस ग्राम में सर्प का बहुत उपद्रव है। सर्प का विष उतारने में निपुण एक जैनी भाई है। वह मिथ्यादेवों की भक्ति करके, उनके मंत्रों को पढ़कर सर्प का विष उतारता है। उसने यदि आपसे मिथ्यात्व त्याग की प्रतिज्ञा ले ली तो हम सबको बड़ी विपत्ति उठानी पड़ेगी। इसलिए उसे छोड़ शेष सबको आप नियम देवें, इसमें हमारा विरोध नहीं है। आगे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।" अब तो विकट प्रश्न आ गया, जो आज बड़े-बड़े लोगों को भी विचलित किए बिना न रहेगा। तार्किक व्यक्ति तो लोकोपकार, सार्वजनिक हित, जीवदया, प्राणरक्षण के नाम पर अथवा अन्य भी युक्तिवाद की ओट में उस मांत्रिक जैन को नियम के बंधन से मुक्ति देने के विषय में पूज्य महाराज से प्रार्थना करेगा कि इस विषय में आपको विशेष विचार करना होगा और सार्वजनिक हित के हेतु केवल एक व्यक्ति को पूजा के लिये छुट्टी देनी होगी। जैन मंत्र का अपूर्व प्रभाव - पूज्य महाराज ने गम्भीरता पूर्वक इस समस्या पर विचार किया और उस जैन बंधु से कहा-“जैन मंत्रों में अचिन्त्य सामर्थ पाई जाती है। हम तुम्हें एक मंत्र बताते हैं। उसका विधिपूर्वक प्रयोग करो यदि दो माह के भीतर यह मंत्र तुम्हारा कार्य न करे तो तुम बंधन में नहीं रहोगे। अत: तुम दो माह के लिये मिथ्यात्व का त्याग करो।" महाराज ने उस मांत्रिक बंधु को मिथ्यात्व का दो माह का त्याग कराकर मंत्र दिया तथा विधि भी कह दी। इतने में कोई आदमी समाचार लाया और बोला कि मेरे बैल को सर्प ने काट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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