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________________ वार्तालाप ५८ अपनी माता से वियुक्त हो भटक रहा था। यदि इसकी रक्षा न की जाएगी तो कौवा वगैरा पक्षी इसको मार डालेंगे । " मैने , "महाराजजी, तो आप क्या करते हैं ? " पूछा, महाराज ने कहा, "हम उस पक्षी को उसी जगह रखवा रहे हैं, जहाँ से वह नीचे आया है । वहाँ आड़ लगवा दी है, जिससे वह इधर न गिरे ।” थोड़ी देर में नसैनी द्वारा व्यवस्था की गई वह पक्षी सकुशल रखा गया। इतने में पक्षी की माता आई और उसे उठा कर ले गयी । यह दृश्य देख कर महाराज बोले, “देखो ! पक्षी की माँ आ गई और अब उसके जीवन की चिंता नहीं रही । " महान आत्मा T 1 यह घटना देखकर मेरी समझ में आया की इन पूज्य पुरुषों की आत्मा यथार्थ में विशाल और महान् हो जाती है, जो छोटे-छोटे प्राणियों की पीड़ा देखकर अनुकम्पा भाव युक्त हो सदय हो जाती है । विशाल आत्मा (Enlarged Self) इसी का नाम है । जीवों का घात करने वाले मांस भक्षी, शिकारी, सुरापायी लेखकों द्वारा लेखनी के बल पर एक दूसरे को बड़ी और श्रेष्ठ आत्मा लिखते हैं, यह तो आँखों अंधे का नयन सुख नामकरण सदृश्य है । सच्ची करुणा ऐसे ही महापुरुषों के अंत:करण में व्याप्त रहती है। जो स्वार्थी आत्मा रहती है, वह अपने सीमित स्वार्थ तथा आनंद के सिवाय दूसरे जीवों की व्यथा और वेदना की ओर तनिक भी संवेदन शील नहीं होती है । ऐसे स्वार्थी जीव ही अपनी विद्वत्ता का जाल बिछाकर भोले लोगों को भ्रांत करते हैं । गौ भक्षण की लालसा जब जगती है, तब ये विश्व के शांतिविधायक लोग कह बैठते हैं कि गाय में आत्मा नहीं है । जब यह स्वार्थवृत्ति और बढ़ती है, तब अपने राष्ट्र के मानव के सिवाय राष्ट्रांतर के मनुष्यों में भी प्राण का सद्भाव न मान, मनमानी क्रूरता का व्यवहार करना अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में अपराध नहीं माना जाता है । आचार्य श्री सदृश सच्चे निःस्वार्थी महापुरुष विरले हुए हैं, जिनकी आत्मा स्वयं के कष्टों को सहन करने के लिये वज्र समान कठोर रहती है, किन्तु दूसरे जीवों की व्यथा के लिये कुसुमादि पुष्प से भी मृदुतर वृत्ति वाली हो जाती है । 'विलियम है जिलिट ने लिखा है, "हमारी सबसे छोटी अंगुली में थोड़ी भी पीड़ा होने पर वह इतनी अधिक चिंता तथा आकुलता 1. "The least pain in our little finger gives us more concern and uneasiness than the destruction of millions of our fellow beings". For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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