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________________ वार्तालाप ब्रह्मचारी बन्धु पधारे। उनके मुख से मधुर-मधुर बातों को सुनकर मैं महाराज से दूसरे दिन बोल उठा, “महाराज ब्रह्मचारीजी बड़े सज्जन धर्मात्मा हैं।" __ महाराज ने कहा, “मराठी भाषा में कहावत है, जैसा बोले तैसा चाले, त्यांची वंदावी पाउले' (जैसा बोले वैसा यदि चले, तो उसके चरणों की वंदना करना चाहिए)।" इस मधुर उत्तर से सब बात समझ में आ गई। इसी प्रकार एकबार एक सज्जन आए और बड़ी-बड़ी लच्छेदार जमीन-आसमान एक करने वाली बातें कहने लगे। उस समय मैंने महाराज से कहा, “महाराज ये बड़े प्रभावशाली व्यक्ति मालूम पड़ते हैं।" महाराज बोले, "तुम नहीं जानते बड़ी बातें करने से ही आदमी बड़ा नहीं बन जाता है।" उनकी लोक प्रवीणता को देखकर चित्त में यही आता था कि वे विशाल जैनसंघ के संरक्षक वृद्ध पितामह ही हैं। महाराज की वाणी में मार्मिकता, मधुरता, तथा उज्ज्वल विनोद का भी सम्मिश्रण रहता था। इसी से उनके पास शुष्क जीवन नहीं दिखता। ऐसा लगता था मानों हम शांति और करुणा के सिंधु के समीप ही बैठे हैं। सन् १९४६ के भादों के पर्व में मैं कवलाना गया था। वहाँ पूज्यश्री का चातुर्मास था। वहाँ महाराजा बड़ौदा गायकवाड के द्वारा बनवाए गए बड़े बड़े भवन हैं। पहले बाल्यकाल में स्वर्गीय सयाजीराव गायकवाड़ एक जैन परिवार के यहाँ नौकरी करते थे। पश्चात् पुण्योदय से वे बड़ौदा सरकार के वंशज निकले। अनेक शुभचिह्नों को देखकर उनको बड़ौदा का राज्यशासन प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने जन्म स्थान में बड़े-बड़े विशाल सुन्दर भवन निर्माण करवाए। अत: कवलाना छोटासा ग्राम होते हुए भी, अनेक बड़े-बड़े भवनों से समन्वित है। यह, उस कवलाना की असाधारणता ही है, जो वहाँ का एक बालक एक बड़े राज्य का शासक बना। उस कवलाना में आचार्य महाराज ने जैनियों की विशेष संख्या न होते हुए भी, अपने दो चातुर्मास व्यतीत किये, इसे उस भूमि की विशेष आकर्षकता ही कहना चाहिए। वहाँ के एक बड़े भवन में जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमाजी विराजमान की गई थी। अब पूज्य महाराज के पुण्य प्रभाव से एक भव्य जिनालय वहाँ बन गया है। मार्मिक विनोद १) चंदेवा : वहाँ व्रतों में शास्त्र वाचन का आदेश गरुदेव ने मुझे दिया था। एकदिन मैं शास्त्र पढ़ रहा था। जिस गद्दी पर मैं बैठा था उसके ऊपर चंदेवा लगा हुआ था। पास में एक ओर पूज्य आचार्य महाराज और दूसरी ओर मुनि ने मिसागर महाराज विराजमान थे। इतने में वर्षा प्रारंभ हो गई और मकान के छप्पर में से कुछ जलकण महाराज के ऊपर गिरने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003601
Book TitleCharitra Chakravarti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year2006
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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