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चारित्र चक्रवर्ती
दोहला हुआ था कि एक सहस्त्र दल वाले एक सौ आठ कमलों से जिनेन्द्र भगवान की पूजा करूँ। इस समय पता लगाया गया की कहाँ ऐसे कमल मिलेंगे ! कोल्हापुर के समीप के तालाब से वे कमल विशेष प्रबंध तथा व्यय द्वारा लाये गये और भगवान की बड़ी भक्ति पूर्वक पूजा की गई थी। उन्होंने कहा- “उस समय मेरी अवस्था लगभग १० वर्ष थी । "
गुळ में जन्म
आचार्यश्री के जन्म के विषय में उन्होंने बताया था कि भोज ग्राम से लगभग तीन
की दूरी पर गुळ ग्राम है। वहाँ हमारे नाना रहते थे। उनके यहाँ ही महाराज का जन्म हुआ था। महाराज के जन्म की वार्ता ज्ञात होते ही सबको बड़ा आनंद हुआ था । ज्योतिष से जन्म पत्रिका बनवाई गई। उसने बताया था कि यह बालक अत्यंत धार्मिक होगा । जगतभर में प्रतिष्ठा प्राप्त करेगा तथा संसार के प्रपंच में नहीं फँसेगा ।
महाराज ने यह भी बतलाया था कि आचार्य महाराज का शरीर अत्यंत निरोग था । कभी भी इनका मस्तक तक नहीं दुखता था । हाँ, एक बार तीन वर्ष की अवस्था में ये बहुत बीमार हो गये थे । रक्त के दस्त होते थे। उस समय इनका जीवन रहता है या नहीं, ऐसी चिन्ता पैदा हो गई थी । किन्तु एक बाई ने दवा दी, उससे ये अच्छे हो गए । इसके सिवाय और कोई रोग नहीं हुआ।
असाधारण शक्ति
आचार्य महाराज का शरीर बाल्य काल में असाधारण शक्ति सम्पन्न रहा है। चावल लगभग चार मन के बोरों को सहज ही वे उठा लेते थे। उनके समान कुश्ती खेलने वाला कोई नहीं था । उनका शरीर पत्थर की तरह कड़ा था। वे बैल को अलग कर स्वयं उसके स्थान में लगकर, अपने हाथों से कुएँ से मोट द्वारा पानी खेंच लेते थे । वे दोनों पैरों को जोड़कर १२ हाथ लम्बी जगह को लांघ जाते थे । उनके अपार बल के कारण जनता उन्हें बहुत चाहती थी। वे बच्चों के साथ बाल क्रीड़ा नहीं करते थे । व्यर्थ की बात नहीं करते थे। किसी बात के पूछने पर संक्षेप में उत्तर देते थे । वे लड़ाई झगड़े में नहीं पड़ते थे । बच्चों के समान गंदे खेलों में उनका तनिक भी अनुराग न था । वे लौकिक आमोदप्रमोद से दूर रहते थे । धार्मिक उत्सवों में जाते थे ।
वीतराग-प्रवृत्ति
प्रारंभ से ही वीतराग प्रवृत्ति वाले थे। घर में बहन की शादी में या कुंमगौड़ा की शादी में शामिल नहीं हुए थे। उनकी स्मरणशक्ति सबको चकित करती थी। कभी उन्हें प्रमाद या भूल के कारण शिक्षकों ने दण्ड नहीं दिया । अध्यापक इनके क्षयोपशम की सदा प्रशंसा करते थे ।
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