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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
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उन तोनों को देखकर उसने भी उन्हें कोसना शुरू किया-"वाह रे बहादुरो ! तुम तीनों प्रथम श्रेणी के आलसी हो, और तुममें किसी प्रकार की कुशलता, पाण्डित्य, मर्दानगी, मार्ग पर स्थिर रहने की दृष्टि भी तो नहीं है, तुम कैसे इस श्वेतकमल को पा सकते थे ? तुम्हें इतना भी तो पता नहीं था कि किस रास्ते से जाना चाहिए, किधर से जाने से कीचड़ नहीं आएगा, कितनी दूरी पर श्वेतकमल है ? देखो, तुम्हारे देखते ही देखते, बात की बात में ही बन्दा अभी उस श्वेतकमल को उखाड़ लायेगा। क्योंकि मैं कुशल हूँ, पण्डित हूँ, मार्गों का जानकार हूँ, उपायों का विशेषज्ञ हूँ, और फिर मैं बहादुर व जवान हूँ। इस श्वेतकमल को ले आना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है । जीवन-मरण की बाजी लगाने वाला ही श्वेतकमल को उखाड़कर ला सकता है । तुम तीनों के वश की बात नहीं थी, यह तो मेरा काम है ।” यों आकण्ठ अहंकार में डूबा हुआ वह चौथा पुरुष भी शेखी बघारता हुआ उस पुष्करिणी में उक्त श्वेतकमल को लेने के लिये उतर पड़ा । परन्तु वह भी देखते ही देखते आगे गहरे कीचड़ में फँस गया। उसकी समस्त आशाओं पर पानी फिर गया, उसके सारे मनोरथ मिट्टी में मिल गये । पूर्वोक्त तीनों व्यक्तियों से वह बाजी मारने गया था, किन्तु बाजी हार गया ।
___इस प्रकार चारों ही व्यक्ति एक के बाद एक आए, पुष्करिणी की शोभा का अवलोकन करने लगे और श्वेतकमल पर मोहित होकर उसे पाने के लिए मचल उठे थे, साथ ही दुसरे, तीसरे और चौथे व्यक्ति ने अपने से पहले आने वाले असफल व्यक्ति को मन ही मन कोसा, गर्वोद्धत होकर अपना मूल्यांकन गलत किया। चारों को ही उनके दुष्प्रयास का फल मिल गया। चारों को अपने गलत पुरुषार्थ का भारी मूल्य चुकाना पड़ा।
सारांश दूसरे, तीसरे, चौथे और पाँचवें सूत्र में क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे, और चौथे पुरुष के असफल प्रयास का वर्णन किया गया है। चारों ही व्यक्तियों का प्रयास प्रायः एक सरीखा होता है । किन्तु दूसरा व्यक्ति पहले की खोटी आलोचना करता है, और उसके प्रयास की निन्दा करता है, तीसरा पहले, दूसरे की और चौथा व्यक्ति पहले, दूसरे और तीसरे पुरुष की खोटी आलोचना और निन्दा करता है। ये चारों ही श्वेतकमल को पाने के लिए अहंकारपूर्वक प्रयास तो करते हैं, लेकिन चारों ही अपने प्रयास में विफल होते हैं।
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