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सूत्रकृतांग सूत्र
इसके बाद इन दोनों की असफलता की कहानी सुनकर तीसरा व्यक्ति भी घटना स्थल पर आ पहुँचा। तीसरा व्यक्ति पहले तो सारी बावड़ी पर नजर फैंकता है । सहसा उसकी दृष्टि भी उसी श्वेतकमल पर जा टिकती । वह भी उन दोनों व्यक्तियों की तरह उस श्वेतकमल को देखकर चित्रलिखित-सा रह गया । उसके हृदय में भी श्वेतकमल को पाने की तीव्र हूक उठी। साथ ही जब वह बावड़ी के बीच में कीचड़ में फँसे हुए उक्त दोनों व्यक्तियों को देखता है तो उन पर खीझ उठता है । वह मन ही मन बड़बड़ाता है - " अरे नालायको ! तुम लोग घुसे ही क्यों थे, इस बावड़ी में; जब तुम दोनों इसके मार्गों से बिलकुल अपरिचित थे । फिर तुम दोनों न तो कुशल थे, न विचारक और न बुद्धिमान । तुमने कभी विद्वानों की संगति ही नहीं कीं, अपनी जिंदगी में तुमने किसी से कुछ सीखा भी तो नहीं था । तुम में अक्ल कहाँ से आती, इस श्वेतकमल को पाने की ? देखना, मैं इस श्वेतकमल को न उखाड़ लाऊँ तो मर्द का बच्चा नहीं ! मैं सब तरह से होशियार हूँ, बुद्धिमान हूँ, जवान हूँ, बालकों-सा नादान नहीं हूँ, और न ही इनकी तरह उपायों और मार्गों से अनभिज्ञ हूँ मुझे सब रास्ते मालूम हैं ।" यों वह तीसरा पुरुष भी शेखी बघारता हुआ, मूँछों पर ताव देकर और श्वेतकमल को उखाड़कर ले आने का संकल्प करके बावड़ी में कूद पड़ा । परन्तु यह क्या, ज्यों ही वह कुछ आगे बढ़ा; उसके पैर वहीं ठिठक गये। वह एक कदम भी आगे न बढ़ सका । उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया । उसके पैरों से जमीन खिसकती सी मालूम होने लगी । कीचड़ में गहराई तक उसके पैर धंस गये । उसके मन में संजोए हुए स्वप्न साकार नहीं हो सके । श्वेतकमल को पाने की उसकी कामना मन की मन में ही रह गई । वह लज्जित होकर नीचा मुँह किये वहीं कीचड़ में फँसा रह गया । धोबी के कुत्ते की तरह वह न घर का रहा, न घाट का । इससे तो वह बावड़ी के किनारे पर ही खड़ा रहता तो अच्छा था । परन्तु उसने इतना प्रयास किया, इतना गर्वोद्धत होकर वचन-प्रयोग किया, सब व्यर्थ ! बेचारे इस तीसरे व्यक्ति भी वही दशा हुई, जो उन दोनों की हुई थी । अब आई चौथे पुरुष की बारी ! वह भी इन तीनों के बारे में सुनकर मन में इतराता और उस श्वेतकमल की प्रशंसा सुनकर मन ही मन उसे पाने का संकल्प करके घर से चला। पूछताछ करके इस पुष्करिणी तक आया । पुष्करिणी के तट पर खड़ा होकर इसकी नयनाभिराम शोभा को निहारने लगा । ज्यों ही उसकी दृष्टि उत्तम श्वेतकमल पर पड़ी, वह आश्चर्य से आँखें फाड़ता रह गया - ओह ! इतना सुन्दर, इतना शोभास्पद, इतना आकर्षक श्वेतकमल तो मैंने अपनी जिन्दगी भर में नहीं देखा । इतने में ही उसकी दृष्टि में वे तीनों व्यक्ति आये, जो उस श्वेतकमल को पाने के लिये पुष्करिणी में उतरे थे, लेकिन बीच में ही पंकमग्न होकर रह गये ।
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