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सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
प्रतिवाद के रूप में नौ पहलुओं द्वारा प्रतिपादित मन्तव्य अंकित किये हैं। नौ पहलुओं की व्याख्या क्रमश: इस प्रकार समझनी चाहिए
( १ ) श्रमणोपासक ने जितने क्षेत्र (देश) की मर्यादा की है, उस क्षेत्र के अन्तर्गत ( समीपवर्ती) जो सप्राणी निवास करते हैं, वे जब मरकर उसी देश (क्षेत्र) में त्ररूप में उत्पन्न होते हैं, तब वे श्रावक के प्रत्याख्यान के विषय होते हैं, क्योंकि श्रावक ने व्रतग्रहण के समय से लेकर मरणपर्यन्त त्रसजीवों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है | अतः श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय कहना ठीक नहीं है, यह इस सूत्र के पहले भाग का आशय है ।
( २ ) इस सूत्र के दूसरे भाग का तात्पर्य यह है कि श्रावक ने जितने देश (क्षेत्र) की मर्यादा की है, उस क्षेत्र में रहने वाले त्रस प्राणी अपने त्रस शरीर को छोड़ कर उसी क्षेत्र में जब स्थावर योनि में जन्म लेते हैं, तब श्रावक उन्हें अनर्थदण्ड देना ( उनकी निरर्थक हिंसा करना ) वर्जित करता है, क्योंकि स्थावर जीवों को अनर्थ दण्ड देने का उसने प्रत्याख्यान किया है । इस प्रकार उसका प्रत्याख्यान सविषयक होता है, निर्विषयक नहीं ।
(३) इरा सूत्र के तीसरे भाग का भाव यह है कि श्रावक के द्वारा ग्रहण की हुई क्षेत्र मर्यादा के अन्दर रहने वाले जो स्थावर प्राणी हैं, वे जब उस मर्यादा से बाह्य देश में और स्थावर योनि में उत्पन्न होते हैं, तब उनमें श्रावक का सुप्रत्याख्यान होता है, क्योंकि त्रस जीवों की हिंसा का उसने प्रत्याख्यान किया है और स्थावर जीवों की निरर्थक हिंसा का भी उसने प्रत्याख्यान किया है । अतः श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना न्यायसंगत नहीं है ।
( ४ ) इस सूत्र के चौथे भाग का आशय यह है कि श्रावक के द्वारा गृहीत क्षेत्र मर्यादा के अन्तर्गत रहने वाले जो स्थावर प्राणी हैं, वे मरकर उस क्षेत्र मर्यादा (सीमा) के अन्दर जब त्रसयोनि में उत्पन्न होते हैं, तब उनमें श्रावक का सुप्रत्याख्यान होता है, क्योंकि सवध का तो उसके प्रत्याख्यान (त्याग) है ही । इस दृष्टि से श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बताना न्यायोचित नहीं ।
( ५ ) इस सूत्र के पाँचवें भाग का तात्पर्य यह है कि श्रावक के द्वारा स्वीकृत क्षत्र सीमा ( मर्यादा) के अन्दर रहने वाले जो स्थावर प्राणी हैं. वे मरकर जब उसी क्ष ेत्र (देश) में रहने वाले स्थावर जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब उन्हें अनर्थदण्ड देना श्रावक वर्जित करता है, अर्थात् उन्हें अनर्थदण्ड नहीं देता । अतः श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय कहना अन्याय है ।
(६) इस सूत्र के छठे भाग का तात्पर्य यह है कि श्रावक के क्षेत्र मर्यादा से बाहर रहने वाले जो स्थावर प्राणी हैं, वे जब उस
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द्वारा निर्धारित मर्यादा के अन्दर
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