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________________ सूत्रकृतांग सूत्र जान-समझकर त्याग-प्रधान धर्म (मोक्षमार्ग) का उपदेश देता है, जिससे निर्वाण प्राप्त होता है। वह धर्म जिन-प्ररूपित है, वीतरागकथित है। जो अनासक्त हैं, निस्पृह हैं, अहिंसा, सत्यादि महाव्रतों का निष्ठापूर्वक पालन करते हैं, वे ही निर्वाण को प्राप्त कर सकते हैं। इसके विपरीत जिनका आचार-विचार है, वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते । यही प्रथम अध्ययन का निष्कर्ष है । प्रथम अध्ययन में प्रयुक्त कुछ शब्द और वाक्य आचारांग के वाक्यों और शब्दों से मिलते-जुलते हैं। इस अध्ययन का मूल उद्देश्य विषय-भोग से या गलत आचार-विचार से निवृत्त करके मुमुक्षुजीवों को मोक्षमार्ग में प्रवृत्त करना है। जो लोग प्रव्रज्याधारी होकर भी विषय-पंक में निमग्न हैं, वे साधु नहीं हैं। वे स्वयं संसार-सागर से पार नहीं हो सकते, तब फिर वे दूसरों को संसार-सागर से कैसे पार कर सकते हैं ? यह भी इस अध्ययन में बताया गया है । इस सम्बन्ध से प्राप्त द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रथम अध्ययन का प्रथम सूत्र इस प्रकार है मूल पाठ सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं-इह खलु पोण्डरीए णामज्झयणे । तस्स णं अयम? पण्णत्ते से जहाणामए पुक्खरिणी सिया बहुउदगा बहुसेया बहुपुक्खला लट्ठा पुण्डरिकिणी पासादीया दरिसणिया, अभिरुवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया, अणुपुवुट्टिया उस्सिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादीया दरिसणिया अभिरूवा पडिरूवा। तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइए, अणुपुवुट्ठिए उस्सिए रुइले वण्णमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादीए जाव पडिरूवे। सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहि तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया अणुपुवुट्ठिया ऊसिया रुइला जाव पडिरूवा, सव्वावंति च णं तीसे गं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगं महं पउमवरपोंडरीए बुइए अणुपुवुटिए जाव पडिरूवे ॥सू० १॥ संस्कृत छाया श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम् । इह खलु पुण्डरीक नामाध्ययनम्, तस्य खल्वयमर्थः प्रज्ञप्तः-तद्यथा नाम पुष्करिणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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