________________
प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
स्यात् बहूदका, बहुसेया, बहुपुष्कला, लब्धार्था, पुण्डरीकिणी, प्रसादिका, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा । तस्याः खलु पुष्करिण्यास्तत्रतत्र देशे देशे तस्मिन् तस्मिन् बहूनि पद्मवरपुण्डरीकानि उक्तानि आनुपूर्व्या उत्थितानि उच्छ्रितानि रुचिराणि वर्णवन्ति, गन्धवन्ति, रसवन्ति, स्पर्शवन्ति, प्रसादिकानि दर्शनीयानि, अभिरूपाणि, प्रतिरूपाणि । तस्याः पुष्करिण्याः बहुमध्यदेशभागे एकं महत् पद्मवरपुण्डरीकमुक्तम् आनुपूर्व्या उत्थितं उच्छ्रितं रुचिर वर्णवत् गन्धवत् रसवत् स्पर्शवत् प्रसादिकं यावत् प्रतिरूपम् । सर्वस्था अपि च खलु तस्याः पुष्करिण्यास्तत्र तत्र देशे देशे तस्मिन् तस्मिन् बहूनि पद्मवर - पुण्डरीकाणि उक्तानि आनुपूर्व्या उत्थितानि उच्छ्रितानि रुचिराणि यावत् प्रतिरूपाणि सर्वस्या अपि तस्याः पुष्करिण्याः बहुमध्यदेशभागे एकं महत पद्मवरपुण्डरीकमुक्तम् आनुपूर्व्या उत्थितं यावत् प्रतिरूपम् ॥ सू० १||
अन्वयार्थ
( सुयं मे आउस तेगं भगवया एवमक्खायं ) श्रीसुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है, उन भगवान् ने ऐसा कहा था । (इह खलु पोंडरीए नामज्झयणे ) इस आर्हत्-प्रवचन में पुण्डरीक नामक एक अध्ययन है, (तस्स णं अयमट्ठे पण्णत्ते) उसका यह अर्थ - भाव उन्होंने बताया था ( से जहाणामए पुक्खरिणीए सिया) कल्पना करो कि जैसे कोई पुष्करिणी ( कमलों वाली बावड़ी ) है | ( बहुउदगा) जो अगाध जल से परिपूर्ण है, ( बहुसेया) बहुत कीचड़वाली है । ( बहुपुक्खला ) बहुत पानी होने से अत्यन्त गहरी है, अथवा बहुत-से कमलों से युक्त है। (लट्ठा) पुष्करिणी ( कमलों से युक्त ) नाम को सार्थक करने वाली अथवा यथार्थ नाम वाली अथवा जगत् में प्रतिष्ठित है, ( पुण्डरिकिणी) उसमें पुण्डरीक यानी श्वेतकमल हैं । ( पासादीया रिसणिया अभिरुवा पडिवा) वह पुष्करिणी देखने मात्र से चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय, प्रशस्त रूपसम्पन्न, अद्वितीय रूपवाली तथा अत्यन्त मनोहर है । (तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तह) उस पुष्करिणी के उन उन देशों और उन-उन प्रदेशों में यत्र तत्र ( बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया) बहुत से उत्तमोत्तम श्वेतकमल विद्यमान हैं (अणुपुब्बुट्ठिया) वे श्वेतकमल क्रम से ऊँचे उठे हुए हैं, ( उस्सिया ) वे पानी और कीचड़ को उल्लंघन करके ऊपर स्थित हैं । ( रुइला ) वे अत्यन्त दीप्तिमान हैं । ( वण्णमंता) वे रंग-रूप में अत्यन्त सुन्दर हैं, (गंधमंता) सुगन्धित हैं, ( रसमंता ) रसों से युक्त हैं, ( फासमंता) उत्तम कोमल स्पर्श वाले हैं (पासादीया afrefणया अभिरुवा पडिरुवा) वे देखने में चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, मनोहर एवं अनुपम सुन्दर हैं । (तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेस भाए) उस पुष्करिणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org