SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२ सूत्रकृतांग सूत्र कायंसि उववज्जति, थावरकायाओ विप्पमुच्चमाणा तसकायंसि उववज्जति) तथा वे त्रस शरीर को छोड़कर स्थावरकाय में उत्पन्न होते हैं, इसी तरह स्थावरकाय को त्याग करके त्रसकाय में उत्पन्न होते हैं। (तेसि च णं तसकायंसि उववन्नाणं ठाणमेय अघत्त) जब वे त्रसकाय में उत्पन्न होते हैं, तब वे प्रत्याख्यानी पुरुषों के द्वारा हनन करने योग्य नहीं होते। व्याख्या उदक निर्ग्रन्थ को गौतमस्वामी का स्पष्ट उत्तर इस सूत्र में उदक निर्ग्रन्थ की बात सुनकर भगवान् गौतमस्वामी ने युक्तिपूर्वक उससे कहा-"आयुष्मान् उदक ! आपने जो प्रत्याख्यान की रीति सुझाई है, वह हमें जरा भी पसन्द नहीं है । वे श्रमण और माहन जो इस प्रकार (केवल 'त्रस' शब्द के आगे 'भूत' पद लगाकर प्रत्याख्यान वाक्य) बोलते हैं, वैसा उपदेश करते हैं, बताते हैं, प्ररूपणा करते हैं, वे समीचीन (जिन परम्परानुसारिणी) भाषा नहीं बोलते, परन्तु वे निरर्थक और संतापदायिनी भाषा बोलते हैं । भगवान् गौतम का आशय यह प्रतीत होता है कि आपका जो सुझाव है कि 'वस' शब्द के आगे 'भूत' शब्द जोड़ देने से ही प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान हो सकता है, अन्यथा प्रतिज्ञा भंग होती है इत्यादि, यह कथन हमको रुचिकर नहीं लगता, बल्कि श्रमणों-निर्ग्रन्थों एवं श्रमणोपासकों पर आक्षेपात्मक और दोषारोपणकारक प्रतीत होता है । क्योंकि 'वस' के पश्चात् 'भूत' पद का प्रयोग करने का आपका सुझाव निरर्थक है, उसका कोई विशेष फल नहीं है। क्योंकि जो अर्थ त्रस पद से प्रतीत होता है, वही त्रसभूत पद से प्रतीत होता है। फिर 'भूत' शब्द जोड़ने का क्या प्रयोजन है। इसके अतिरिक्त 'भूत' शब्द-प्रयोग से अनेक अर्थ भी सम्भव हैं; क्योंकि भूत शब्द उपमा अर्थ में भी प्रयुक्त होता है । जैसे कि 'देवलोकभूतनगरभिदम्' अर्थात् यह नगर देवलोक के तुल्य है । इस प्रकार भूत शब्द का अर्थ उपमा देने से त्रसभूत' पद का अर्थ त्रस के सदृश भी हो सकता है और ऐसा अर्थ होने पर त्रस के सदृश प्राणी के वध का त्याग' यह प्रत्याख्यान वाक्य का अर्थ होगा, त्रस प्राणी के वध का त्याग नहीं । मगर यह अर्थ यहाँ पर बिल्कुल अभीष्ट नहीं है । अतः त्रसपद के उत्तर में 'भूत' शब्द जोड़ने से जो अनभीष्ट एवं अनिष्ट अर्थ निकलता है, उस अर्थ के होने का संशय उत्पन्न करना ठीक नहीं है। यदि 'भूत' शब्द यहाँ उपमा (सदृशता) का वाचक नहीं है, तब तो उसका प्रयोग करना निष्प्रयोजन है, बेकार है; क्योंकि 'भूत' शब्द का कोई विशिष्ट अर्थ नहीं होगा । अर्थात्-वैसी स्थिति में भूत शब्द उसी अर्थ का बोधक होगा, जिसका बोधक अस शब्द है । जैसे कि 'शीतीभूतमुदकम्' इस वाक्य में शीत पद के उत्तर में जोड़ा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy