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सप्तम अध्ययन : नालन्दीय
४०३ हुआ 'भूत' शब्द शीत अर्थ को ही बताता है, उससे भिन्न अर्थ को नहीं, यानी भूत शब्द किसी न्यून या अधिक अर्थ को प्रगट नहीं करता।
यदि वर्तमान अर्थ में भूत शब्द का प्रयोग माना जाए तो भी कोई फल नहीं है, इसके प्रयोग करने का; क्योंकि जो जीव वर्तमान काल में त्रस शरीर में आया है, वह सदा इसी शरीर में रह नहीं सकता, किन्तु वह स्थावरनामकर्म के उदय से स्थावरकाय में भी जाएगा । और वह स्थावरकाय में जाने पर उक्त त्रसवधप्रत्याख्यानी श्रमणोपासक द्वारा घात करने योग्य होगा, फिर उसकी प्रतिज्ञा अभंग (अखण्डित) कैसे रह सकेगी ? एवं जिसने किसी खास जाति या खास व्यक्ति को न मारने की प्रतिज्ञा की है, जैसे कि "मैं ब्राह्मण को न मारूगा अथवा मैं अमुक सूअर को नहीं मारूंगा" वह जीव यदि ब्राह्मण शरीर या शूकर शरीर को छोड़कर अन्य जाति के शरीर में उत्पन्न हुए उन प्राणियों का घात करता है तो आपके सिद्धान्त के अनुसार उसकी प्रतिज्ञा का भंग क्यों नहीं माना जाएगा ?
अत: आप प्रत्याख्यान के पाठ में त्रस शब्द के उत्तर में भूत शब्द को जोड़ने की जो बात कहते हैं, वह उचित नहीं है, वह निरर्थक पुनरुक्तिदोष का सेवन करना है। शिष्ट पुरुषों ने प्रत्याख्यान की जो विधि बताई है, वही हमें रुचिकर लगती है।
जो लोग प्रत्याख्यान पाठ में त्रस पद के बदले 'त्रसभूत' पद का प्रयोग नहीं करते, उन पर आप प्रतिज्ञाभंग का आक्षेप लगाकर व्यर्थ ही दोषारोपण करते हैं । क्योंकि 'भूत' शब्द लगाने का कोई मतलब ही नहीं है, बल्कि ऐसा करके आप उन श्रमणों एवं श्रमणोपासकों को उन-उन प्राणियों के प्रति संयम करने से हतोत्साहित करते हैं, उन पर कलंक लगाकर उन्हें प्रत्याख्यान करने से रोकते हैं । वे लोग जो संयम पालते हैं, उन्हें आप संशय में डालते हैं। उनमें बुद्धिभेद पैदा करके आप एक महान् अनर्थ करते हैं।
ऐसी भाषा, जैसी कि आप बोलते हैं, जिन परम्परानुसारिणी भाषा नहीं है, वह श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए बोलने योग्य नहीं है। उससे श्रमणों और श्रमणोपासकों के हृदय में अनुताप एवं संताप पैदा होता है।
वास्तव में देखा जाए तो वर्तमान में जो त्रस प्राणी हैं, वे भूतकाल में चाहे स्थावर रहे हों या और कोई, अथवा भविष्य में स्थावर बनेंगे या अन्य योनियों में जाएँगे, उनसे प्रत्याख्यानी का कोई वास्ता नहीं, प्रत्याख्यानी के प्रत्याख्यान का सम्बन्ध उनकी वर्तमान जाति से हैं अर्थात् वर्तमान में जो त्रस के रूप में प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं, उन्हीं के वध का वह त्याग करता है। स्थावरकाय प्राणी भी यदि वर्तमान में त्रस रूप में उत्पन्न होंगे तो उनका वध-त्याग भी वर्तमान में त्रस होने के नाते श्रावक अवश्य करेगा।
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