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नहि कालादिहितो केवलए हिंतो जायए किंचि । इह मुग्गरंधणाइवि ता सव्वे समुदिया हेऊ ॥
संसार का कोई भी कार्य काल आदि से सिद्ध नहीं हो सकता, किन्तु धर्म-अधर्म आदि भी यहाँ कारण रूप से रहते हैं । अतः धर्म-अधर्म के साथ मिले हुए ही काल आदि सबके कारण हैं । अकेले नहीं । मूंग का पकना आदि भी अकेले काल आदि को कारण मानने पर सिद्ध नहीं हो सकते । इसलिए विवेकी साधक यह बात कथमपि स्वीकार नहीं कर सकते कि धर्म-अधर्म का अस्तित्व नहीं है । यही चौदहवीं गाथा का आशय है।
बंध और मोक्ष का अस्तित्व मानना ही चाहिए
सूत्रकृतांग सूत्र
कर्म पुद्गलों का जीव के साथ सम्बद्ध होना बन्ध है, समस्त कर्मों का क्षय होना मोक्ष है । बन्ध नहीं है, और मोक्ष भी नहीं है; इस प्रकार की मान्यता रखना उचित नहीं | बन्ध और मोक्ष के विषय में अश्रद्धा का परित्याग करके इन दोनों अस्तित्व पर श्रद्धा रखनी चाहिए। अश्रद्धा अनाचार में गिराने वाली है । अतः जो अपना कल्याण चाहते हैं, उन्हें अश्रद्धा का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए । कई दार्शनिक बन्ध और मोक्ष का अस्तित्व स्वीकार नहीं करते वे कहते हैं- - आत्मा अमुर्त है, और कर्मपुद्गल मूर्त है । ऐसी स्थिति में अमूर्त आत्मा का मूर्त कर्मपुदगलों के साथ कैसे बन्ध हो सकता हैं ? अमुर्त आकाश का किसी भी मूर्त पदार्थ के साथ लेप नहीं हो सकता, इसी तरह अमूर्त आत्मा के साथ मूर्त कर्मपुद्गलों IT बन्ध नहीं हो सकता। इसलिए आत्मा में बन्ध नहीं मानना चाहिए | कहा
भी है
"वर्षातपाभ्यां किं व्योम्नः "
वर्षा होने से आकाश भीग नहीं जाता, और न ही धूप पड़ने से वह तपता है । क्योंकि वर्षा और धूप मूर्त हैं, और आकाश अमूर्त है। हां, चमड़े पर उनका ( वर्षा और धूप का प्रभाव अवश्य होता है ।
इस प्रकार जत्र आत्मा अमूर्त होने के कारण बद्ध नहीं हो सकता, तब उसके मोक्ष की बात करना निरर्थक है । क्योंकि बंध का नाश होना ही मोक्ष है । बन्ध के अभाव में मोक्ष सम्भव नहीं है । जब आत्मा के बन्ध ही नहीं है, तब मोक्ष किस बात से या किसका होगा ? अतः बन्ध और मोक्ष दोनों ही मिथ्या हैं, यह किसी का मत है।
वास्तव में यह सिद्धान्त यथार्थ नहीं है । क्योंकि अमूर्त के साथ मूर्त का सम्बन्ध देखा जाता है । जैसे कि विज्ञान अमूर्त पदार्थ है, मूर्त नहीं है, फिर भी मद्य आदि के सेवन से या ब्राह्मी आदि के सेवन से उसमें अनुपकार या उपकार प्रत्यक्ष देखा जाता है । मद्यादि के पान से उसमें विकृति और ब्राह्मी आदि के पान से उसमें
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