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संस्कृत छाया
नायमर्थः समर्थः (चोदकः ) इह खलु बहवेः प्राणाः भूता जीवाः सत्त्वाः
,
सन्ति येऽनेन शरीरसमुच्छ्रयेण न दृष्टाः वा न श्रुताः वा नाभिमताः वा न विज्ञाताः 1: वा, येषां प्रत्येकं प्रत्येकं चित्तं समादाय दिवा वा रात्रौ वा सुप्तो वा जाग्रद् वा अत्रिभूतः मिथ्यासंस्थितः नित्यं प्रशठव्यतिपातचित्तदण्डः तद्यथा प्राणातिपाते याव मिथ्यादर्शनशल्ये ।। सू० ६५ ।।
अन्वयार्थ
प्रश्नकर्ता कहता है - ( जो इणट्ठे समट्ठे) पूर्वोक्त बात यथार्थ नहीं है (इह खलु बहवे पाणा भूया जीवा सत्ता संतिजे इमेणं सरीरसमुस्सएणं णो दिट्ठा वा सुया वा नाभिमया वा विनाया वा ) इस जगत् बहुत से ऐसे प्राणी हैं जिनके शरीर का प्रमाण कभी देखा नहीं गया, न सुना ही गया है, वे प्राणी न तो अपने अभिमत (इष्ट) ही हैं और न ज्ञात ही हैं । ( जेंस णो पत्ते पत्तेयं चित्तसमादाए दिया वा राओ वा सुत्त वा जागरमाणे व अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे तं जहा - पाणाइवाए जात्र मिच्छास सल्ले ) अतः समस्त ( हर एक ) प्राणियों के प्रति हिंसामय चित्त रखते हुए दिन-रात, सोते-जागते उनका अमित्र ( शत्रु) बना रहना तथा उनको धोखा देने के लिए तलर रहना एवं सदा उनके प्रति शठतापूर्ण हिंसामय चित्त रखना ऐसे (पूर्वोक्त अज्ञात) प्राणियों के लिए सम्भव नहीं है । इसी तरह प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक के पापों में उन प्राणियों का लिपटे रहना भी सम्भव नहीं है ।
व्याख्या अव्यक्त अज्ञात प्राणियों का पापकर्म करना : सम्भव या असम्भव ?
सूत्रकृतांग सूत्र
इस सूत्र में शास्त्रकार ने प्रश्नकर्ता के द्वारा अज्ञात, अदृष्ट, अव्यक्त एवं अश्रुत प्राणियों के विषय में पापकर्मबन्धन मानने से इन्कार की प्रतिध्वनि अभिव्यक्त की है ।
प्रश्नकर्ता का कहना है- आपश्री के कथन से ऐसा प्रतीत होता है कि सभी प्राणी सभी के शत्रु हैं । परन्तु यह बात युक्तिसंगत नहीं है कि अज्ञानी, अविरत एवं अप्रत्याख्यानी जीव सब प्राणियों के शत्रु हैं, हिंसक हैं; क्योंकि हिंसा का भाव परिचित प्राणियों पर ही होता है, अपरिचित प्राणियों पर नहीं । संसार में बहुत से सूक्ष्म और बादर, त्रस और स्थावर, पर्याप्त और अपर्याप्त प्राणी हैं, जिनके शरीर का परिमाण ( कद ) इतना छोटा है कि वह न कभी देखा जाता है, और न सुना जाता है ।
अनन्त - अनन्त प्राणी ऐसे हैं जो देश काल, एवं स्वभाव से अत्यन्त दूरवर्ती हैं, वे इतने सूक्ष्म और दूर हैं कि हमारे जैसे अग्दर्शी पुरुषों ने न तो उन्हें कभी देखा
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