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चतुर्थ अध्ययन : प्रत्याख्यान-क्रिया
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रायपुरिसरस वा खणं लद्धणं पविसिस्सामि खणं लद्धणं वहिस्सामित्ति पहारेमाणे दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए, निच्च पसढविउवायचित्तदंडे) जैसे उस गृहपति या गृहपति के पुत्र अथवा राजा या राजपुरुष को मारने की इच्छा करने वाला वह वधक रुष सोचता है कि मैं मौका पाते हो इसके मकान में घुसूंगा और अवसर मिलते ही इसको खत्म कर दूंगा ऐसे कुविचार से वह दिन-रात, सोते-जागते हरदम घात लगाये रहता है, सदा उनका शत्रु बना रहता है, तथा धोखा देना चाहता है, उनके नाश के लिए निरन्तर शठतापूर्वक दृष्टचित्त लगाये रखता है, (वह चाहे घात न कर सके, परन्तु है घातक ही) (एवमेव बालेवि सव्वेसि पाणाणं सवेसि सत्ताणं दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे तं जहा--पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले) इसी तरह बाल ---अज्ञानी जीव भी समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों का दिन-रात सोते-जागते सदा वैरी बना रहता है, वह असत्य बुद्धि से युक्त रहता है, रात-दिन गलत विचारों से घिर। रहता है, उनके प्रति निरन्तर शठतापूर्वक हिंसा में चित्त जमाए रखता है, क्योंकि वह बाल (अज्ञानी) प्राणी प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पापों में रचा-पचा रहता है। (भगवया खलु एवं अक्खाए) भगवान ने इसीलिए ऐसे जीवों के लिए कहा है कि (असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते यावि भवइ) वे संयमहीन, अविरत, पापकर्मों का नाश व प्रत्याख्यान न करने वाले, पापक्रिया से युक्त, संवररहित, एकान्तरूप से प्राणियों को दण्ड देने वाले, अर्वथा अज्ञानी (बाल) एवं बिलकुल सुषुप्त भी होते हैं । (से बाले अवियारमणवयणवायवक्के सुविणमवि ण पस्सइ, से य पावे कम्मे कज्जइ) वह अज्ञानी जीव चाहे मन, वचन, काया और वाक्य का समझ-बूझकर (विचारपूर्वक) प्रयोग न करता हो, चाहे वह स्वप्न भी न देखता हो यानी उसका ज्ञान बिलकुल अस्पष्ट ही क्यों न हो, तो भी वह (अप्रत्याख्यानी होने के कारण) पापकर्म करता है । (जहा से वहए तस्स वा गाहावइस्स वा जाव तस्स वा रायपुरिसस्स पत्त यं पत्तेयं चित्तसमादाए दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे भवइ) जैसे वध की इच्छा रखने वाला घातक पुरुष उस गाथापति, गाथापतिपुत्र, राजा एवं राजपुरुष के प्रति सदा हिंसामय चित्त रखता है, तथा अहर्निश, सोते-जागते वह उनकी घात लगाये रहता है, इसलिए वह उनका वैरी बना रहता है, उसके दिमाग में धोखा देने के दुष्ट विचार जमे रहते हैं, और वह सदा ही उनके घात की उधेड़बुन में रहता है, और शठतापूर्वक दुष्ट विचार ही किया करता है। (एवमेव बाले सव्वेसि पाणाणं जाव सवेसि जीवाणं पत्तेयं पत्तेयं चित्तसमादाए दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे भवइ) इसी तरह समस्त प्राणियों के प्रति निरन्तर हिंसामयभाव रखनेवाला एवं प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य
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