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सूत्रकृतांग सूत्र
ने पुनः पूछा । (आयरिए आह) इसके उत्तर में आचार्य ने कहा -- (तत्थ खलु भगवया छज्जीवनिकायहेऊ पण्णता) इस विषय में तीर्थंकरदेव ने छह जीवनिकायों को कर्मबन्ध के कारण बताये हैं (तं जहा-पुढचीकाइया जाव तसकाइया) वे पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय-पर्यन्त हैं । (इच्चेएहिं हिं जीवनिकाहिं आया अप्पडिइयपच्चर बायपावकम्मे निच्चं पसढविउवायचित्तवंडे पाणाइवाए जाव परिग्गहे, कोहे जाव मिच्छादसणसल्ले) इन छह प्रकार के जीवनिकाय के जीवों की हिंसा से उत्पन्न पाप को जिसने तपस्या आदि की आराधना करके नाश नहीं किया है, तथा भावी पाप को प्रत्याख्यान के द्वारा रोक नहीं दिया है, अपितु सदा निष्ठुरतापूर्वक प्राणियों के घात में चित्त लगाए रखता है, और उनको दण्ड देता है, तथा प्राणातिपात से लेकर परिग्रहपर्यन्त के पापों से तथा क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक के पापस्थानों से निवृत्त नहीं होता है, वह चाहे किसी भी अवस्था में हो, अवश्यमेव पापकर्म का बन्ध करता है, यह सत्य है।
(आपरिए आह) इस सम्बन्ध में आचार्यश्री (प्ररूपक) पुनः कहते हैं--(तत्थ खलु भगवया बहए दिळंते पण्णते) इस सम्बन्ध में तीर्थंकर भगवान ने वधक (वधकर्ता-हत्यारे) का दृष्टान्त बताया है । (से जहाणामए वहए सिया) जैसे कोई एक वधक (हत्यारा) होता है, (गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रणो वा रायपुरिसस्स वा) वह (हत्यारा) गृहपति, या गृहपति के पुत्र की, अथवा राजा की या राजपुरुष की हत्या करना चाहता है, (खणं लद्धणं पविसिस्सामि, खणं लद्धणं वहिस्सामि संपहारेमाणे) वह इसी ताक में रहता है कि अबसर पाकर मैं घर में घुसूंगा और मौका पाते ही हत्या कर दूंगा, (से किं नु हु नाम वहए तस्स गाहावइस्स वा गाहावइपुत्तस्स वा रणो वा रायपुरिसस्स वा खणं लद्धणं पविसिस्सामि खणं लद्ध ण बहिस्सामि पहारेमाणे) उस गृहपति की या गुहपतिपुत्र की अथवा गजा की या राजपुरुष की हत्या करने हेतु अवसर पाकर घर में प्रवेश करूंगा और मौका पाते ही काम तमाम कर दूंगा, इस प्रकार निरन्तर संकल्प-विकल्प करने और मन में निश्चय करने वाला वह हत्यारा (दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढविउवायचित्तदंडे भवइ ?) दिन में या रात में, सोता हो या जागता प्रतिक्षण इसी उधेड़बुन में रहने वाला वह उन सब का सदा अमित्र (शत्रु) एवं उनसे सदा गलत (प्रतिकूल) व्यवहार करने वाला चितरूपी दंड में सदा हत्या का दुष्ट विचार रखने वाला व्यक्ति उनका हत्यारा कहा जा सकता है या नहीं ? (एवं वियागरेमाणे समियाए वियागरे चोयए -हता भवइ) आचार्यश्री (प्ररूपक) द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर प्रेरक (प्रश्नकर्ता शिष्य) समभाव से कहता है-हाँ, पूज्यवर ! ऐसा पुरुष हत्यारा (हिंसक) ही है।
(आयरिए आह) आचार्यश्री इस दृष्टान्त के पूर्वोक्त कथन को स्पष्ट करने हेतु कहते हैं-(जहा से वहए तस्स गाहावइस्स वा तस्स गाहावइपुत्तस्स वा रण्णो वा
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