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तृतीय अध्ययन : आहार-परिज्ञा
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है, उसे परस्पर मिलाकर चारों ओर से धारण किये रहने वाली वायु ही है। हवा जब ऊपर की होती है तो वह जल (अपकाय) ऊपर जाता है तथा हवा नीचे की होती है तो नीचे जाता है, तथा वायु तिरछी हो तो जल तिरछा जाता है। आशय यह है कि यह अप्काय वायुयोनिक है, इसलिए हवा जैसी होती है, वैसा ही अप्काय होता है । उसके कुछ भेद नीचे लिखे अनुसार हैं - अवश्या य यानी ओस, सर्दी के दिनों में जो तुषारपात होता है, उसे ओस या पाला कहते हैं । वह जल का ही भेद है । हिम यानी बर्फ । जाड़े के दिनों में कभी-कभी हिमपात होता है, अर्थात् बर्फ गिरता है, उसे हिम या हिमबिन्दु कहते हैं । मिहिका अर्थात् कोहरा या धुन्ध । कभी-कभी सर्दी के दिनों में धुए के समान सूक्ष्म जलकण इतने गिरते हैं कि पृथ्वी को अंधेरे से ढक देते हैं, उसे मिहिका कहते हैं। यह भी जल का ही भेद हैं। करका यानी ओला (गड़ा) पत्यर के समान जमा हुआ पानी जो आकाश से गिरता है, उसे करका कहते हैं, इसे ओला या गड़ा भी कहते हैं। यह भी जल का भेद है । और शुद्ध जल तो जल है ही। ये पूर्वोक्त अप्काय के जीव अपनी उत्पत्ति के स्थान पर अनेक विध स्थावर एवं त्रस जीवों के स्नेह का आहार करते है। ये आहारक हैं, अनाहारक नहीं।
___ अप्योनिक अपकाय-वायु से उत्पन्न होने वाले अप्काय का वर्णन करने के पश्चात् अप्काय से ही उत्पन्न होने वाले अपकाय का वर्णन किया जाता है । इस जगत् में कई जीव अपने पूर्वकृत कर्म के प्रभाव से अप्काय में ही दूसरे अपकाय के रूप में उत्पन्न होते हैं । वे प्राणी जिन स्थावर और त्रसयोनिक उदकों से उत्पन्न होते हैं, उन्हीं के स्नेह का आहार करते हैं तथा वे पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक का भी आहार करते हैं । इनके अनेक वर्ण, गन्ध आदि वाले दूसरे शरीर भी कहे गये हैं।
. इसके पश्चात् शास्त्रकार ने उन जीवों का वर्णन किया है, जो उदकयोनिक उदक तो होते हैं, लेकिन वे पूर्ववत् कर्मवश त्रसस्थावर योनिक जल के रूप में उत्पन्न न होकर तथा सस्थावरयोनिक उदक के स्नेह का आहार न करके उदकयोनिक उदक में उत्पन्न होते हैं और उदकयोनिक उदकजीवों के स्नेह का आहार करते हैं। अर्थात् वे जल में ही उत्पन्न होते हैं, जल में ही रहते हैं और जल में ही बढ़ते हैं, उसी जल के रस का उपभोग करते हैं। उन उदकजीवों के सम्बन्ध में सभी बातें पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए।
___ इसके आगे के सूत्रपाठ में जलयो निक जल के सम्बन्ध में निरूपण किया गया है। पहले में और इसमें इतना अन्तर है कि पहले के पाठ में उदकयोनिक उदक में उदकरूप से उत्पन्न होने वाले जीवों का वर्णन है, जबकि इस में उदकयोनिक उदक में उदकयोनिक त्रस के रूप में उत्पन्न होने वाले जीवों का वर्णन है।
शेष सब वर्णन पूर्ववत् समझ लेना चाहिए।
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