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द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
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समिया) वे ईर्या, भाषा, एषणा, आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा एवं उच्चार-प्रस्रवणखेलसिंघाण जल्लपरिष्ठापनिका, इन पाँच समितियों से युक्त होते हैं। (मणसमिया वयसमिया कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता) तथा मनसमिति, वचनसमिति. कायसमिति तथा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति, और कायगुप्ति से युक्त होते हैं। (गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी) वे अपनी आत्मा को पापों से गुप्त-सुरक्षित रखते हैं, अपनी इन्द्रियों को विषय-भोगों से गुप्त रखते हैं, और ब्रह्मचर्य का नौ गुप्तियों सहित पालन करते हैं। (अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा अणासवा अग्गंथा छिन्नसोया निरुवलेवा) वे क्रोध मान, माया और लोभ से रहित होते हैं, वे शान्ति, उत्कृष्ट शान्ति-बाहर-भीतर की शान्ति से युक्त होते हैं, तथा समस्त संतापों से रहित होते हैं, वे किसी भी आस्रव का सेवन नहीं करते और बाह्य आभ्यन्तर परिग्रह-ग्रन्थियों से मुक्त होते हैं, वे महात्मा संसार के प्रवाह को छेदन कर देते हैं, कर्ममल के लेप से भी रहित होते हैं । (कंसपाइ व मुक्कतोया) जैसे कांसे की पात्री (बर्तन) में जल का लेप नहीं लगता, इसी तरह उन महात्माओं में कर्ममल का लेप नहीं लगता । (संखो इव णिरंजणा) जैसे शंख कालिमा से रहित होता है, वैसे ही वे महात्मा रागादि के कालुष्य से रहित होते हैं, (जीव इव अप्पडिहयगई) जैसे सचेतन जीव की गति कहीं नहीं रुकती, वैसे ही उन महात्माओं की गति कहीं नहीं रुकती, (गगणतलं व निरालंबणा) जैसे आकाश-तल बिना अवलम्बन से ही रहता है, वैसे ही वे महात्मा भी निरालम्बी रहते हैं अर्थात् अपने निर्वाह के लिए किसी व्यापारधंधे या व्यक्ति का अवलम्बन नहीं लेते । (वाउरिव अपडिबद्धा) जैसे वायु को कोई रोक नहीं सकता, वह अप्रतिबद्ध चलता है, वैसे ही वे महात्मा भी प्रतिबन्ध (रुकावट) से रहित होते हैं । (सारदसलिलमिव सुद्धहियया) शरद काल के स्वच्छ पानी तरह उनका हृदय भी अत्यन्त स्वच्छ और शुद्ध होता है। (पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा) कमल का पत्ता जैसे जल के लेप से दूर रहता है, वैसे ही वे भी कर्ममल के लेप से दूर रहते हैं । (कुम्मो इव गुत्तिदिया) वे कछुए की तरह अपनी इन्द्रियों को (विषय-भोगों से) गुप्त-सुरक्षित रखते हैं । (विहग इव विष्पमुक्का) जैसे पक्षी आकाश में स्वतन्त्रविहारी होता है, वैसे ही वे महात्मा समस्त ममत्व-बंधनों से रहित होकर आध्यात्मिक आकाश में स्वतन्त्र-विहारी होते हैं । (खग्गिविसाणं व एगजाया) जैसे गेंडे का सींग एक ही होता है, उसी तरह वे महात्मा भाव से राग-द्वेष वजित अकेले ही होते है। (भारंडपक्खीव अप्पमत्ता) वे भारण्ड पक्षी की तरह अप्रमत्त (सावधान) होते हैं । (कुञ्जरो इव सोंडीरा) जैसे हाथी वृक्ष आदि को उखाड़ने में दक्ष होता है, वैसे ही वे मुनि कषायों को मिटाने में शूरवीर व दक्ष होते हैं । (वसभो इव जातत्थामा) जैसे बैल भार वहन करने में समर्थ होता है, वैसे ही वे महात्मा संयम-भार को वहन करने
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