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सूत्रकृतांग सूत्र स्थान अनार्यों द्वारा सेवित, अधर्मस्थान एवं केवलज्ञान से रहित है, इस स्थान में रहने वाला जीव कदापि सर्वदुःखों से मुक्त नहीं होता। यह बिलकुल मिथ्या एवं अशुभ स्थान है । अत: विवेकी पुरुषों को इसका दूर से ही त्याग कर देना चाहिए । यह प्रथम स्थान, जो अधर्मपक्ष रूप है, उसके सम्बन्ध में शास्त्रकार का विचार है ।
मूल पाठ अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ-इह खलु पाईणं वा ४ संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-अणारंभा, अपरिग्गहा, धम्मिया, धम्माणुया, धम्मिट्ठा जाव धम्मेणं चैव वित्ति कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वओ पाणातिवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जंति ततो विप्पडिविरया जावज्जीवाए।
__से जहाणामए अणगारा भगवंतो ईरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाणभंडमत्तणिक्खेवणासमिया उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपरिट्ठावणियासमिया मणसमिया वयसमिया कायसमिया मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अकोहा अमाणा अमाया अलोभा संता पसंता उवसंता परिणिव्वुडा अणासवा अग्गंथा छिन्नसोया निरुवलेवा कंसपाइ व मुक्कतोया, संखो इव णिरंजणा, जीव इव अप्पडिहयगई, गगणतलं व निरालंवणा, वाउरिव अपडिबद्धा, सारदसलिलं व सुद्धहियया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, कुम्मो इव गुत्तिदिया, विहग इव विप्पमुक्का, खग्गिविसाणं व एगजाया, भारंडपक्खीव अप्पमत्ता, कुंजरो इव सोंडीरा, वसभो इव जातत्थामा, सोहो इव दुद्धरिसा, मंदरो इव अप्पकंपा, सागरो इव गंभीरा, चंदो इव सोमलेस्सा, सूरो इव दित्ततेया, जच्चकंचणगं व जातरूवा, वसुंधरा इव सव्वफासविसहा, सुहययासणोविव तेयसा जलंता। पत्थि णं तेसि भगवंताणं कत्थवि पडिबंधे भवइ । से पडिबंधे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–अंडए इ वा, पोयए इ वा, उग्गहे इ वा, पग्गहे इ वा, जन्नं जन्नं दिसं इच्छंति, तन्नं तन्नं दिसं अप्पडिबद्धा सुइभूया लहुभूया अप्पगंथा संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणा विहरति । तेसि णं भगवंताणं इमा एतारूवा जायामायावित्ति होत्था, तं जहा-चउत्ये भत्ते, छठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दवालसमे भत्ते, चउद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए, तिमासिए,
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