________________
द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान
१८७
चउम्मासिए, पंचमासिए, छम्मासिए; अदुत्तरं च णं उक्खित्तचरगा णिक्खित्तचरगा, उक्खित्तणिक्खित्तचरगा अन्तचरगा पन्तचरगा लूहचरगा समु. दाणचरगा संसद्धचरगा असंसठ्ठचरगा तज्जातसंसठ्ठचरगा दिट्ठलाभिया अदिट्ठलाभिया पुट्ठलाभिया अपुट्ठलाभिया भिक्खलाभिया अभिक्खलाभिया अन्नायचरगा उवनिहिया संखादत्तिया, परिमितपिण्डवाइया सुद्धसणिया अंताहारा पंताहारा अरसाहारा विरसाहारा लूहाहारा तुच्छाहारा अंतजीवी पंतजीवी आयंबिलिया पुरिमड्डिया निविगइया अमज्जमंसासियो णो णियामरसभोई ठाणाइया पडिमाठाणाइया उवकडुआसणिया, णेसज्जिया वीरासणिया दण्डायतिया लगंडसाइणो अप्पाउडा अगत्तया अकंडुया अणि
ठुहा (एवं जहोववाइए) धुतकेसमंसुरोमनहा सव्वगायपडिकम्मविष्पमुक्का चिट्ठति । ते णं एतेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामन्नपरियागं पाउणंति २ बहु बहु आबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूई भत्ताइं पच्चक्खंति, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेदिति, अणसणाए छेदित्ता जस्सट्ठाए कोरति नग्गभावे मुण्डभावे अदन्तवणगे अछत्तए अणोवाहणए भूमिसेज्जा फलगसेज्जा कट्ठसेज्जा केसलोए बंभचेरवासे परघरवेसे लद्धावलद्ध माणावमाणणाओ होलणाओ निदणाओ खिसणाओ गरहणाओ तज्जणाओ तालणाओ उच्चावया गामकटंगा बावीसं परीसहोवसग्गा अहियासिज्जति तमळं आराहंति, तमढं आराहित्ता चरमेहि उस्सासनिस्सासेहि अणंतं अणुत्तरं निव्वाघायं निरावरणं कसिणं पडिपुण्णं केवलवरणाणदसणं समुप्पा.ति, समुप्पाडित्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति ।
एगच्चाए पुण एगे भयंतारो भवंति, अवरे पुण कम्मावसेसेणं कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवन्ति, तं जहा–महड्डिएसु महज्जुइएसु महापरक्कमेसु महाजसेसु महाबलेसु महाणुभावेसु महासुक्खेसु ते णं तत्थ देवा भवंति महड्डिया महज्जुइया जाव महासुक्खा हारविराइयवच्छा कडगतुड़ियथंभियभुया अंगयकुण्डलमट्ठगण्डयलकन्नपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाण. गन्धपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिवेणं रूवेणं दिव्वेणं वन्नेणं दिव्वेणं गन्धेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org