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________________ द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान १६१ वस प्राणी को मारकर अपने इस महापाप कर्म के कारण महापापी के नाम से अपने आपको प्रसिद्ध कर लेता है । ( से एगइओ खलदाणेणं सुरायालएणं केणवि आयाणेणं विरुद्ध समाणे गाहावईणं गाहावइपुत्ताणं वा सस्साई सयमेव अगणिकाएणं झामेइ ) कोई पुरुष सड़े-गले या कम अन्न देने से अथवा अपने किसी अन्य अभीष्ट स्वार्थ सिद्ध न होने से अथवा अपमान आदि अन्य किसी भी कारणवश गृहपतियों या गृहस्थ-पुत्रों पर नाराज (विरुद्ध) होकर उनके या उनके पुत्रों के शालिधान, जो, गेहूँ आदि अनाजों को स्वयं आग लगाकर जला देता है, (अन्नेणवि अगणिकाएणं सस्साई झामावेइ, अगणिकाएणं सस्साई झामंतं वि अण्णं समणुजाणइ ) दूसरे से भी आग लगवाकर उक्त गृहपतियों के अनाजों को जलवा देता है, तथा गृहपति एवं उसके पुत्रों के धान्यों को जो जला देता है, उसे अच्छा समझता है । ( इति से महया पावहिं कम्मे हि अत्ताणं उववखाइत्ता भवइ) इस प्रकार वह व्यक्ति उक्त महान् पाप कर्मों के कारण जगत् में अपने आप को महापापी के नाम से मशहूर कर देता है । ( से एगइओ खलदाणेणं अदुवा सुराधालएणं केणइ आयाणं विरुद्ध े समाणे गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताणं वा, उट्टाणं वा, गोणाणं वा, घोडगाणं वा, गद्दभाणं वा सयमेव घूराओ कप्पेs) कोई व्यक्ति गड़ा-गला या कम अन्न पाने से अथवा अन्य किसी इष्ट स्वार्थ की सिद्धि न होने से अथवा अपमान आदि किसी और कारण से तिलमिलाकर क्रुद्ध होकर उक्त गाथापति या गाथापति पुत्रों के ऊँटों, गायों, घोड़ों या गधों के जांघ आदि अंगों को काट देता है । ( अण्णेवि कप्पावेइ, कप्पंतं वि अन्नं समणुजाणइ ) दूसरों से उनके अंग कटवा देता है तथा जो गृहपति के ऊँट आदि पशुओं के अंग काटता है, उसे अच्छा समझता है । ( इति से महया जाव भवइ) इस महान् पाप के कारण वह संसार में महापापी के नाम से प्रसिद्ध हो जाता है । ( से एगइओ केणइ आयाणेणं विरुद्ध े समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुरायालएणं गाहावईणं वा गाहावइपुत्ताणं वा उट्टसालाओ वा, गोणसालाओ वा, घोडगसालाओ वा, गद्दभसालाओ वा) कोई पुरुष अपमान आदि किसी कारणवश अथवा खराब या कम अन्न पाने से या उससे अपनी इष्ट सिद्धि न होने के कारण उक्त गृहपति या गृहपति-पुत्रों के विरुद्ध एवं उनसे क्रुद्ध होकर उनकी ऊँटशाला, गौशाला, अश्वशाला या गर्दभशाला को ( कंटक बोंदियाए परिपेहिता) कांटों की झाड़ियों से या कटीली डालियों से ढक कर (सयमेव अगणिकाएणं झामेइ ) उनमें स्वयं आग लगा देता है, (अशण वि झामावेइ, झामंतं वि अत्र समणुजाणइ ) दूसरों से उनमें आग लगवाता है, तथा जो उनमें आग लगाता है, उसे अच्छा समझता है । ( इति से महया जाव भवइ ) इस प्रकार के महान् पापकर्म करने के कारण जगत् में वह महापापी के नाम से विख्यात हो जाता है । ( से एगइओ hes आयाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुराथालएणं ) कोई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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