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________________ द्वितीय अध्ययन : क्रियास्थान १५५ ( 2 ) कोई तीतर, बटेर चिड़िया आदि को अपने जाल में फँसाकर या पिंजरे में डालकर पकड़ता है और उन्हें मांसाहारियों को बेचकर या उन्हें मारकर उनका मांस बेचकर अपनी आजीविका उपार्जन करता है और स्वजनवर्ग का पालन करता है । (१०) कोई मछलियाँ पकड़कर, उन्हें मारकर या बेचकर अपनी रोटी - रोजी कमाता है । (११) कोई पापी गोहत्या का कार्य अपनाकर उनका मांस आदि बेचकर अपना जीवनयापन करता है । (१२) कोई गोपालन का धंधा करके गायों और बछड़ों को कसाई को बेच देता है । इस प्रकार की निन्द्य जीविका करता है । (१३) कोई कुत्तों या अन्य त्रस प्राणियों को मारने का धंधा अपनाकर अपनी जीविका चलाते हैं । (१४) कोई पापी पुरुष शिकारी कुत्त े पालकर उनके द्वारा मनुष्यों या पशुओं का घात कराकर अपनी जीविका चलाते हैं । और इस प्रकार के अन्य महापापमय कार्य व्यवसाय के रूप में अपनाकर महान् पापकर्मबन्ध करते हैं । उन पापकर्मों के कारण जनता में वे व्यक्ति महापापी के नाम से मशहूर हो जाते हैं । वे अपने उपार्जित महापापकर्म के फलस्वरूप घोर नरक में जाते हैं । वहाँ चिरकाल तक वे भयंकर दुःखों और दारुण यातनाओं से पीड़ित होते रहते हैं । अतः विवेकी पुरुषों को इन महापातक कार्यों से सदैव दूर रहना चाहिए । मूल पाठ से एगइओ परिसामझाओ उट्ठित्ता अहमेयं हणामीत्ति कट्टु तित्तिरं वा, वट्टगं वा, लावगं वा, कवोयगं वा, कविजलं वा, अन्नयरं वा तंसं पाणं हंता जाव उवक्वाइत्ता भवइ । से एगइओ केवि आयाणेणं विरुद्ध समाणे अदुवा खलदाणेणं अदुवा सुरायालएणं गाहावईण वा, गाहावइपुत्ताणं वा, सयमेव अगणिकाएणं सस्साई झामेइ, अन्नेवि अगणिकाएणं सस्साइं झामावेइ, अगणिकाएणं सस्साइं झामंतं वि अण्णं समणुजाणइ, इति से महया पावहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003600
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorHemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
PublisherAtmagyan Pith
Publication Year1981
Total Pages498
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size23 MB
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