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सूत्रकृतांग सूत्र
नाम की कोई चीज उनके दिल में नहीं होती। उनकी नस-नस में क्रूरता भरी रहती है। सांसारिक सुख-सामग्री का येन-केन-प्रकारेण उपार्जन करना ही वे अपना कार्य समझते हैं। वे अनुगामिक, उपचरक, प्रतिपथिक, संधिछेदक, ग्रन्थिछेदक, औरभ्रिक, सौवरिक, वागुरिक, शाकुनिक, मात्स्यिक. गोघातक, गोपालक, शौनिक और श्वभिरन्तक-इन १४ प्रकार के महापाप व्यवसायों तथा इसी प्रकार के अन्य महापाप कर्मो के द्वारा अपनी जीविका चलाकर जीवन को महापापमय बना लेते हैं । जगत् भी ऐसे लोगों को महापापी कहकर सम्बोधित करता है। वे किस-किस प्रकार के पापमय कर्मों को अपनाते हैं ? वे संक्षेप में इस प्रकार हैं
(१) कोई पापी किसी धनिक को धन लेकर दूसरे गाँव आदि जाते देखकर उसके पीछे-पीछे चल पड़ता है। जहाँ वह अपने पापकर्म के योग्य स्थान और समय देखता है, वहाँ उसे मार-पीटकर या उसकी हत्या करके उसका धन छीन लेता है। आए दिन वह ऐसा ही धन्धा करता है ।
(२) कोई धन-हरण करने के लिए किसी धनिक का नौकर बनकर उसकी सेवा करता है, अपनी सेवा से उसका विश्वासपात्र बन जाता है। मौका पाकर वह उसे मार कर उसके धन-माल पर हाथ साफ करके नौ-दो-ग्यारह हो जाता है।
(३) कोई व्यक्ति किसी धनिक को दूसरे गाँव से आता हुआ सुनकर उसके सम्मुख जाता है। मार्ग में ही मौका पाकर उसे मार-पीटकर उसका धन लूट लेता है, या छीन लेता है।
(४) कोई धनिकों के घरों में सेंध लगाकर उनमें घुसता है और धन-माल चुराकर भाग जाता है । इस प्रकार चोरी के धन्धे से अपना, अपने परिवार आदि का पालन करता है।
(५) कोई धनाढ्य लोगों को असावधान देखकर उनकी गाँठ काटता है, जेबें कतरता है और इस प्रकार धनहरण करके अपनी जीविका चलाता है।
(६) कोई भेड़ों को पालता है, उनके बालों तथा मांस को बेचकर अपनी रोजी कमाता है, तथा भेड़ों एवं अन्य प्राणियों का वध करता है, इस तरह वह महापापी बनता है।
(७) कोई सूअरों को पालता है, और बुरी तरह मारकर उनका छेदनभेदन करके, उनके बाल, खाल, मांस आदि बेचकर धन कमाता है । भंगी, चाण्डाल या खटीक लोग प्रायः यह पाप कर्म करते हैं ।
(८) कोई जाल बिछाकर मग आदि पशुओं को फंसाता है, उन्हें पकड़कर मांसाहारियों को बेच देता है, या उनका मांस बेचकर अपनी जीविका चलाता है।
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